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पतझड़ साक्षी है, फूलों के मौसम लौट आयेंगे... !!

तुम देखना 


एक समतल भूमि होगी
कहीं दूर अवश्य...


उबड़-खाबड़ राहों से गुज़र कर

हम जिस तक पहुंचेंगे... !



कहीं होगा
एक बित्ता आसमान...
जो तुम्हारी मेरी छत पर
आधा-आधा होगा...


हमने बांटे होंगे तब तक
अनगिन खुशियाँ और गम...
यूँ जीवन की दुर्गम राहों को
नेह के धागों ने साधा होगा... !


तुम देखना


कविता के आँगन में
काँटों के बीच मुस्कुराती कली मिलेगी...


कहीं होगी वहीँ
घास पर
ओस की धवल बूँदें...


आंसू और ओस की नमी
महसूस करना कविता में
आँखें मूँदे...


ओस और आंसू
घुल कर स्याही में
साथ की एक अनूठी परिभाषा रच जायेंगे...
पतझड़ साक्षी है, फूलों के मौसम लौट आयेंगे... !!




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