उसने कहा --
बहुतबेचैन था मनबेहदउदास थे हमकविता की ऊँगली थामीवो कहती रही, हम बस भरते रहे हामी उसने कहा -- हो जाओगुमकोरे कागज़ परबसलिखकर "तुम"
View Articleकौन नाता...?
तेरा मेराकौन नाता...?कभी आंसुओं सेतो कभी ओस सेहै सींचा जाता...??कभीकह देते हैंदर्द समंदर...कभीइस नाते को कर लेते हैंज़िन्दगी का पक्षधर... कभी नदिया बहती हैकभी हम स्वयं भावों संग बह जाते हैं...अनगिन...
View Articleआना-जाना...!
जाने को उद्धत हो नचले जाना...कौन रोक सका है समय को...किसने बांधा धारा को...ये बेकार ही न जिद्द ले बैठते हैं कि आधे आधे न हों हमजो हो वो सारा हो...सब तो बिखरन ही है यहाँफिर हम कैसे साबूत बच...
View Articleहो सके तो...!
मन का पंछी...जीवन का आकाश...धरा की बेचैनियाँ...और समंदर!समंदर के अथाह में तैरतीआस विश्वास कीतसल्लियाँ... धैर्य की अनगिन मछलियाँ...!तटों पर एक बार हो आओ...मन! हो सके तो समंदर हो जाओ...!!
View Articleहो सके तो यकीं करना...!
तुम यकीं नहीं करोगेहमें पता है...पर हो सके तो यकीं करना...यहाँ की सुबहों में उजाला नहीं हैबस इसलिएकि तुम्हारी मुस्कराहटकितने दिन हुएनहीं दिखी...उजाला क्या?यहाँ तो सुबह ही नहीं होती...रात ही रात...
View Articleअथाह की कुछ तो थाह मिले...!
वो सागर के समीप होने का दिन था... वो लहरों से खेलने का दिन था... वो उस तट पर खो जाने का दिन था... समय की परवाह न करते हुए लम्हों को जी लेने का दिन था... सब से दूर अपने करीब होने का दिन था... लहरों से...
View Articleदर्द और दवा... !
भाप से जल कर...मन, रह गया, मचल कर...ओह!क्यूँ नहीं रहती तू संभल कर...ज़िन्दगी! दे सज़ाकर, फिर से, कोई छल कर...फिर से बिखर...और फिर फिर समेट खुद को...जीत ले विडम्बनाएं...संकल्पों के सांचे में ढ़ल...
View Articleपूरा चाँद... आधे अधूरे हम... !!
मैंने चाँद को देखा... वो निर्निमेष जैसे मुझे ही निहार रहा था... या शायद मेरी उसकी ओर एकाग्र दृष्टि ये आभास करा रही थी...! जो भी हो, दोनों ही विकल्पों में से जो भी सत्य रहा हो, है तो यह एक सुन्दर संयोग...
View Articleयही तो है रक्षा पर्व... !!!
बीतते समय के साथ कितना कुछ है जो बीत जाता है... ये सच है कि इस बीतने में अपनी आस्था एवं श्रद्धा को तो बचाया ही जा सकता है पर कितनी बार ऐसा होता है कि आस टूटने लगती है और निर्मम समय सभी कोमल भावों को...
View Articleमन बंजारा...!
एक घर सजाया प्यार सेसब से प्रीत बढ़ाईकितनों से होती गयी आत्मीयताफिर भी शुरू से आखिर तक रही मैं परायीबंधे थे तो मर्ज़ी सेतोड़ा बंधन तब भी अंदाज़ रहा न्यारापड़ाव का मोह बिसारचल दिए, तो मिल ही जायेगा...
View Articleमुस्कुराती रही दुआ... !!
किस्मत का क्या है...बनती है...बिगड़ती है...ज़िन्दगी...किसी मोड़नहीं ठहरती है...वक़्त को फिसल जाना था...आँखों के सामने से मंज़र बदल जाना था...सो,वही हुआ...हमारे दामन में मुस्कुराती रही दुआ... !!
View Articleबाक़ी है सफ़र...
निरुद्धेश्यपटरियों के आस पास चलते हुएट्रेन पर सवार हो गयी...पन्ने पलटती हुई चेतनाकुछ दूर तक गयी...फिर वापसी की राह लीकि लौटना ज़रूरी था... !दिन के ख़ाके में कितने ही ऐसे चाहे अनचाहे मोड़ थेजिनसे गुज़रना...
View Articleमीरा... !!
बुखारखोयी सी संतुलन की धाररोता सिसकता मनतड़पता हुआजीवनरो रो कर सारा घर सर पर उठाये हुएजो परेशान हुए जा रहे थे...किसे पुकारें इस बात कीथाह नहीं पा रहे थे...तभी दूर से आवाज़ आई...कुछ रचनात्मक करो सब भूल...
View Articleमधुराधिपतेरखिलं मधुरम्... !!
जीवन कितनी दूर ले आता है हमें... समय कहाँ कैसे कब क्या प्रस्तुत करेगा, कोई नहीं जानता... ऐसे में कुछ एक मंत्रोच्चार से भाव हमें हमारे बचपन से... हमारे घर से जोड़े हुए है...बालसुलभ कुछ लकीरें खिंची... मन...
View Articleचलते चलते... !!
रात एग्यारह बजे के आसपास से ही बारिश हो रही है... मन अन्यान्य चिंताओं से घिरा बरस रहा है... ये बरस कर चिंतन तक की राह तय कैसे करे यही विचार रहे हैं कांच पर पड़ी बूंदों को एक टक ताकते हुए... .... !...
View Articleसुदूर कहीं... !
द्वेष, दंभ, दंश के संसार सेकहीं दूर... सुदूर कहीं...कश्ती!ले चल हमें कहीं और,कि ये अपना संसार नहीं... ... ... !!यहाँ रोज़ बातें होती हैं,दिल दुखाया जाता है...अभी एक बारबरस कर रुकी ही थी,कि फिर आँख...
View Articleइस्ताम्बुल... !!
घर जाना... घर हो जाने जैसा होता है... जैसे एकाकार होने जा रहा हो मन अपनी चिरपरिचित दुनिया से... अपने परिवेश से... अपनी जानी पहचानी हवा के आगोश में निश्चिंत हो चैन की नींद सोना जब दुर्लभ हो ऐसे में ऐसी...
View Articleतेरी ख़ातिर... !!
चाँदघटते हुए...नाव के आकार का हो चला था...आज एक तारा भी दिखा... !अमूमन तारे नहीं दीखते हैं,खिड़की से झांकते हुए मेरे मुट्ठी भर आकाश में.खैर,हर क्षण रंग बदलता था अम्बरलाली...छा जाने को तत्पर थी,चाँद और...
View Articleइस्ताम्बुल:"लोनली प्लानेट"... !!
आधी अधूरी यह पोस्ट भी उस दिनही तैयार थी... सोचा था उसी दिन शाम तक पोस्ट भी हो जाएगी... पर टल गयी बात... और रात आ गयी... दो एक दिन मन यूँ ही डूबा रहा... खोया रहा बस ऐसे ही... फिर रात, चाँद और एक अकेले...
View Articleकितने विम्ब, कितनी स्मृतियाँ: इस्ताम्बुल
ये झुण्ड... ये पंछियों की श्रृंखला आकर्षित करती है...! इनकी दुनिया कितनी भिन्न होती होगी न...! हम इंसानों की तरह न संग्रह की चिंता, न भविष्य की फिक्र... बस मन से जीना ... उस एक पल को... जो अभी है... जो...
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