↧
इस्ताम्बुल... !!
घर जाना... घर हो जाने जैसा होता है... जैसे एकाकार होने जा रहा हो मन अपनी चिरपरिचित दुनिया से... अपने परिवेश से... अपनी जानी पहचानी हवा के आगोश में निश्चिंत हो चैन की नींद सोना जब दुर्लभ हो ऐसे में ऐसी संभावनाओं का जन्मना... पंछी बना देता है मन को ही नहीं सम्पूर्ण अस्तित्व को भी... ऐसा लगता है जैसे दौड़ते हुए पहुँच जायें...!
↧