जीवन कितनी दूर ले आता है हमें... समय कहाँ कैसे कब क्या प्रस्तुत करेगा, कोई नहीं जानता... ऐसे में कुछ एक मंत्रोच्चार से भाव हमें हमारे बचपन से... हमारे घर से जोड़े हुए है...
बालसुलभ कुछ लकीरें खिंची... मन ही मन मधुराष्टकम गाया अपने भाई बहनों के साथ...
ये यूँ मेरी तुच्छ कोशिशें अंकित हो जाये यहाँ भी... कि लौटना चाहता है मन... उन दिनों में... जब प्रसाद पाने के लिए आधी रात तक जागते थे हम और उत्साह में मम्मी के साथ निर्जला व्रत भी रख लेते थे...
*** *** *** सभी को कृष्णाष्टमी की शुभकामनाएं! हरि ॐ तत्सत्!