रो रो कर सारा घर सर पर उठाये हुए जो परेशान हुए जा रहे थे...
किसे पुकारें इस बात की थाह नहीं पा रहे थे...
तभी दूर से आवाज़ आई...
कुछ रचनात्मक करो सब भूल जाओ मीरा बनाओ...!!
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यूँ ही शुरू किया... कुछ लकीरें खींचीं... और एक आकृति बन गयी... भक्ति में लीन मुख की सुषमा जाने कैसी होती होगी... इतनी क्षमता न पेंसिल में है, न शब्दों में कि उकेर सके, वह आभामंडल... ईश्वर सब जानते हैं... उन्हें स्वीकार है हर एक प्रयत्न हमारा... बस भाव ही तो प्रमुख है, शेष सब गौण... !!