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Channel: अनुशील
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कतरनें...!

यात्रा में यहाँ वहाँ, रोते हँसते, दौड़ते भागते, भींगते सूखते लिखे गए कुछ चुटके पूर्जों को सहेजते हुए... ::बादल न आकाश का होता है... न ही ज़मीन का... दोनों के बीच उपस्थित वह केवल भ्रम ही जीता है... हमारी...

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हैप्पी बर्थडे, अर्णव...!

Dear Arnav,Well, I heard that you are also called Anu... भैया कहते हैं अर्णव से अर्णु पुकारते पुकारते अनु हो गया तुम्हारा भी नाम... चलो ऐसा ही है जीवन... हम सब अलग अलग होते हुए भी एक ही हैं... अब देखो...

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कैसे तुझको पाएं...???

तुमने हमें विवेक तो दियापर विवशता भी दीहमारी विवशता है...हम जीवन के मोह पाश सेउबर नहीं पाते हैं...हम आगत विगत कीपरिक्रमाओं काआजीवन बोझ उठाते हैं...छूटता नहीं दुःखदूर से स्वप्न सम निहारता है सुख आस...

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ये बुलबुले...!

ये बुलबुले...बस क्षण भर का अस्तित्व...मुस्कानें...बस पल भर में अंतर्ध्यान...देती हुई स्थान...विराट व्यथा को...शायद यही सही भी हो...कि...अजब है यह संसार...यहाँ औरों को खुश देखमुरझा जाते हैं लोग... ......

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'कलाम'... आपको सलाम...!!

३ मार्च २००६... वो एक विशेष दिन था... पूरा परिसर जैसे सिमट कर उस आसमान के नीचे समा गया था जिसके तले खड़े होकर हमें राष्ट्रपति को सुनने का सुअवसर मिलने वाला था... दुर्भाग्यवश अन्यान्य कारणों से हम नहीं...

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बेवजह... यूँ ही... !!

ज़िन्दगी अजीब राहों से गुजरती है... इतनी जल्दी सबकुछ बीत रहा है... किनारे छूटते हुए से दिख रहे हैं... मन बेहद उदास है... जाने कैसी स्थितियां परिस्थितियां बनी हैं कि शब्द शब्द को तरस गया है मन... आवाज़ तक...

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एकाकी मन और बूँदें...!!

भींगे हम...भींगा मन...दोनों ही थे नम...वो अकेला क्यूँ भींगता...?उसके साथ हो गए हम...बूंदों की थिरकन परमचल उठा अकेलापन...दोनों ही फिर जम कर भींगे एक मेरा छाता और एक हम...!बूँदें...एकाकीपन...और...

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उलझन सुलझन की दुविधा में...

कहते हो-जीवन उलझा हुआ है...जीवन ही क्या?सृष्टि में कहाँ कुछ भीसुलझा हुआ है...!एक जगह सुलझती हैतो फिर कहीं उलझ जाती है...गांठें कहाँ कभी खुल पाती हैं...अन्यान्य धागों की भीड़ मेंउलझन सुलझन की दुविधा...

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तुम...

तुमनेह हो...तुमसे मिलती है प्रेरणा...कितनी ही बार डूबती हुई आस को तुमने ही बचाया है... तुम कभी नहीं जान पाओगेकि क्या हो तुम मेरे लिए...ठीक वैसे ही जैसे कभी न जान पाऊं मैं शायदकि क्या हूँ मैं तुम्हारे...

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सफ़र के साथी...!

बादल...धूप...पवन...बारिश...छाँव...सिहरन...प्रार्थना...दीप...वंदन... समर्पण...बाती...चन्दन...आंसू...आस...कविता...ओस...विश्वास...क्षणिकता --ये सबसफ़र के साथी हैं... ज़िन्दगी इन्हेंअपना सगा बताती है...राही...

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वो तुम्हें अपना कहेगी... !!

प्रतिविम्बों में,ढूंढ़ी हमने ज़िन्दगी...मन ही मन,चलती रही बंदगी...प्रतिपल प्रतिक्षण,रौशनी ठगती रही...अँधेरे को जीतना था,कविता जगती रही...वो भी हैमझधार की सगी...जो नावकिनारे है लगी...सुबहफिर सेचल...

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देखो, भूल न जाना...

पुल कोपार कर...उसेभूल न जाना...क़दमों के निशानरह जाते हैं...ज़रा सोच समझ करकदम बढ़ाना...नाज़ुक से बंधनतोड़ न जाना...देखो, मिले हो किस्मत सेछोड़ न जाना...अक्सर ऐसा होता है --सामने वाले की आँखों के आगेअँधेरा...

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ये दिन और कुछ यादें...!

वाराणसी कैंट रोड स्थित भारत माता मंदिर  में बैठ दीवारों पर अंकित वन्दे मातरम् गीत कागज़ पर उतारना याद आता है... भारत माँ की दिव्यता की प्राणप्रतिष्ठा मंदिर को विशिष्ट बनाती है... यहाँ कई बार जाना हुआ......

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सागर, नीलगगन और मन की उड़ान...!!

पहाड़ों की ऊंचाई सेदेखना समंदर...सुनना लहरों का शोर...और देखनाविलीन होते हुएसमंदर को नीलगगन मेंउस छोर पर...कहाँ हैइस नीले और उस नीले के बीच कीविभाजन रेखा...?हमने तो नहीं देखा...!उस ऊंचाई सेमहसूसना तट का...

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बस ऐसे ही...!!

ये विचित्र लोग हैं... ये जगह विचित्र है... यहाँ केवल लोगों को टांग अड़ाने से मतलब है... दूसरों की शान्ति भंग करना... ये फ़ेवरेट हॉबी है लोगों की... और बेहद सिद्दत के साथ प्रैक्टिस में भी है ये हॉबी...

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शहर, हम और कविता सा कुछ...!!

सुशील जी का होम टाउन सिंदरी है... सिंदरी, मेरी ससुराल... सिंदरी और जमशेदपुर में अक्सर तकरार होती रहती है कि कौन बेहतर... और निश्चित ही हममें से कोई नहीं हारता... हम जमशेदपुर की रट लगाये रहते हैं और...

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...और यूँ दूर हो गए हम...?!!

बीतते रहे क्षण...दूर होते गए हम...ज़िन्दगीकई पड़ावों सेहोकर गुजरी...अघाती रहीदेख राहों मेंभावों की मंजरी...कभी खुशियाँअचानक मिल गयींकभी रहीं थोड़ी कम...आँखेंवक़्त बेवक़्तहोती रहीं नम... कितने...

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कितने छली हैं ये एहसास भी...!

दूरी हैऔर है वोपास भी...कितनेछली हैंये एहसास भी...हमने देखीटूटती हुईअंतिम आस भी...ज़िन्दगी दूर नहीं थीपर ये भी सच हैवो नहीं थी पास भी...कहने को जीवित हैंकि है जीवनआती जाती सांस ही...लय संगीत सब अधूरेशोर...

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कथ्य आपका, कलम मेरी... !!

उठते गिरते... रोते सँभलते... चलते चलते अब अनुशील पर ५०० पोस्ट्स हैं... ये यात्रा कलमबद्ध हो... लौट कर आने को ऐसी जगह रच रही है निरंतर मेरे लिए... जिसका होना कभी कभी अनिवार्य सा जान पड़ता है... जब कहीं...

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ये साथ है अनूठा...!!

तालों से पटा पुल...समय सहेजता हैआस्था के अनगिन फूल...साथ की परिभाषा जाने क्या होती है...जाने क्या होता है प्रेम...ताला लटका रह जाता है अंकित नामों का विम्ब बनकरऔर ताले की अभिन्नचाभीफेंक दी जाती हैअथाह...

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