$ 0 0 पुल कोपार कर...उसेभूल न जाना...क़दमों के निशानरह जाते हैं...ज़रा सोच समझ करकदम बढ़ाना...नाज़ुक से बंधनतोड़ न जाना...देखो, मिले हो किस्मत सेछोड़ न जाना...अक्सर ऐसा होता है --सामने वाले की आँखों के आगेअँधेरा छा जाए...इस ख़ातिरजारी रखते हैं वो धूल उड़ाना...ये रीत है यहाँ कीराहों में रोड़े अटकाए जाते हैं...राही! उन रोड़ों से हीतुम पुल बनाना...अँधेरी राहों मेंअंजुरी भर रौशनी हेतु...अपनी समस्त पूँजिया लगाकर भीदीये जलाना... हारती हुई आशा कीबढ़कर बाहें थाम लेना...डूबती नैया कीतुम पतवार हो जाना...राही! यूँ चलना राहों में...व्यष्टि से समष्टि, समष्टि का सार हो जाना...यहीं रहना और यहीं रहकर इस दुनिया से पार हो जाना... !!