सुशील जी का होम टाउन सिंदरी है... सिंदरी, मेरी ससुराल... सिंदरी और जमशेदपुर में अक्सर तकरार होती रहती है कि कौन बेहतर... और निश्चित ही हममें से कोई नहीं हारता... हम जमशेदपुर की रट लगाये रहते हैं और सुशील जी सिंदरी की... निश्चित ही दोनों शहर अपनी अपनी जगह विशिष्ट हैं... और हम दोनों अपनी अपनी जगह सही :) बचपन जहां बीता हो उससे प्रिय कोई शहर हो ही नहीं सकता कभी... कहीं भी रहे हम... दिल तो अपने बचपन के शहर के लिए ही धड़केगा हमेशा...
इतनी भूमिका इसलिए कि बहुत दिनों से पेंडिंग पड़ी एक पोस्ट पूरी करनी है... सिंदरी के लिए कुछ लिखना है... आशीष कुमार मिश्र जी से बातों बातों में सिंदरी पर कुछ लिखने की बात हुई थी... और इतने दिनों से टलता जा रहा था यह... आज जो कुछ प्रवाह में लिख गया तो पढ़ने के बाद पाया कि इतने समय बाद लिखे भी तो वैसा कुछ नहीं लिख पाए जो लिखना चाहा होगा... खैर, जो लिख गया वही अभी के लिए प्रेषित हो जाये... फिर कभी कुछ लिखवाया प्रेरणा ने तो वो भी लिख ही जायेगा... हम सारी जिम्मेवारी लेखनी को सौंप खुद मौन हो जाते हैं... जो लिखती है वही लिखती है... जो लिखा वो उसी की प्रेरणा ने लिखा... !!
शहर...
शहर इंसानों की तरह होते हैं...
एक की जगह
कभी दूसरा नहीं ले सकता...
हर एक शहर की अपनी आत्मा है...
अपने समीकरण...
अपना व्याकरण...
रोज़
भले एक सी ही पड़ती हो उनपर...
सूरज की किरणें
एक सी ही होती हो सुबह...
पर,
जगता हर शहर
अपने अपने अलग अंदाज़ में ही है...
जुदा होता है
सूरज के अभिवादन का तरीका
हर एक शहर की
अपनी एक लय होती है...
और हर एक शहर से
रिश्ता भी कुछ एक दिनों का ही होता है...
कहाँ कितना बीतेगा वक़्त
ये बात भी तय होती है...
जन्मे कहाँ...
अध्ययन कहाँ...
अध्यापन कहाँ...
और कहाँ कर दिए गए विदा--
ये समय समय की बात है...
क्या कहें...?
कैसा उदास दिन है...
कैसी रीती रात है...
हम कहीं के नहीं हैं
और यही सबसे सच्ची बात है... !!
क्या लिखें आपकी सिंदरी के लिए...
हमने अभी कहाँ है इस शहर को इतने पल दिए...
कि...
लिख सकें
उसकी मिट्टी की महिमा...
पर विश्वास है
एक दिन निश्चित लिख जायेंगे
अपने भाग्य से जुड़े इस शहर की गरिमा ...!!