$ 0 0 भाप से जल कर...मन, रह गया, मचल कर...ओह!क्यूँ नहीं रहती तू संभल कर...ज़िन्दगी! दे सज़ाकर, फिर से, कोई छल कर...फिर से बिखर...और फिर फिर समेट खुद को...जीत ले विडम्बनाएं...संकल्पों के सांचे में ढ़ल कर...ज़िन्दगी!दौड़ते हुए सरपट...कभी रुक जा तू, चिंतन की गली में भी,पल भर...हमनहीं हारेंगे अँधेरे से...हृदय से लग जायेंगे रौशनी केकदम दर कदम चल कर...सब समाधान कब मांगे हैं...अरे! कुछ प्रश्नों को तो हल कर...संभावनाओं के सांचे में ढ़ल कर...ओह!मन, रह गया, मचल कर...भाप से जल कर...तभी अवतरित हुई दवा...दुआ सी कविता बनकर... !!