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Channel: अनुशील
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आभास

दर्ददामनहौसलादुआ--अभी-अभीयहाँ से होकरगुज़री है ज़िन्दगी!सूनापनविरक्तिसंशयसमाधान--अभी-अभीइस ठौरठहरी है ज़िन्दगी!प्रार्थनाएँठोकरेंठेसअट्टहास-- कुछ नहीं सुनतीअपनी धुन में चली जाती हैबहरी है ज़िन्दगी?! 

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सुख है!

इतना वृहद है दुःखइतने सारे हैं दुःखकि अपना दुःख बहुत छोटा हो जाता है दुःख रचा नियति नेतो दुःख को आसमान-सा ऐसा विस्तार दियाकि ये सबके हिस्से आया जैसे सबका अपना-अपना आसमानवैसे सबके अपने-अपने दुःख इस...

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लिखना आश्वस्ति है!

कुछ तो बात होगीकि अपनी बेचैनियों का हलहम कविताओं में जीते हैंघूँट-घूँटआँसूआँखों से रीते हैं!    लिख लेनाकितनी ही बारअपने आप में ही हल होता हैकई बार हमलिखते हुएअंधकार से जीते हैं!चलते हुएसमाधानराहों में...

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आने वाले कल के लिए

येअनिश्चित-सेकाश और शायद सरीखे शब्दों की ही महिमा हैकि हम चलते चले जाते हैंउन मोड़ों से भी आगेजहाँ से आगे की कोई राह नहीं दिखती ये शब्द सम्भावनाओं का वो आकाश हैंजो घिरे हुए बादलों के बीच भीचमक उठते...

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मन मौसम

बूँदो का मोक्ष हैबारिशबादलों केमिट जाने की चाह की पुष्टि हैबारिशआकाश का अलंकारऔर धरती का संस्कार है बारिशदुःख की सपाट राह मेंसुख की जरा सी नमी है बारिश।

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सुख है

एक बूँद आँसू एक व्यथा समंदर भर एक क्षण की कोई बात जो न भूले मन जीवन भर ऐसे कैसे-कैसे घाव समेटे हम जीते हैं जीते हुए घूँट ज़हर के कितने हम पीते हैं मन में जाने कैसा पर्वताकार दुःख है अब धीरे-धीरे उसी को...

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शुभ संकल्प सा हृदय में राम आए

बुराई पर जीतती अच्छाई जीवन में संकल्पों का वह ताना बाना बुने कि हम उद्धत हों जाएँ अपने अपने भीतर के रावण को परास्त करने के लिए दीप जलें हृदय सुमन खिलेमन में ऐसा उत्सव हो कि दुःख समग्र आप्लावित हो जाए...

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भावांजलि : सलाम, अपराजिता शर्मा

जो एकाएक उठ कर चल देते हैं बस इस धराधाम से असमय वो कितना विराट शून्य छोड़ जाते हैं पीछे।पर,यह भी है कि हम कौन होते हैं ये कहने वाले कि वे असमय चले गए हो सकता है यही यथेष्ट समय होयही सबसे उचित मुहूर्त...

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लौ दीये की : कविता संग्रह

निष्प्राण माटी सी थी भाव-लताकविता के अवलंब ने भाव-लता को सुदृढ़ आधार दिया माटी का दीया रूप साकार किया और स्वयं लौ-सी प्रज्वलित हो उठी।दीये की गरिमा लौ से है कि बुझे दीप की गति तो श्मशान ही है।जब तक लौ...

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दूरी

मुझ तक नहीं आती हैकभी कोई ढाढ़स की आवाज़ अपना ढाढ़स होने को मुझे ही औरों का ढाढ़स होना पड़ता हैजिस जिस तक मैं पहुँचीवो सब मेरे खुद तक पहुँचने के ही उपक्रम थेमेरा आसमान इतना भींगा था कि सूखे का भ्रम...

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