इतना वृहद है दुःख
इतने सारे हैं दुःख
कि अपना दुःख बहुत छोटा हो जाता है
दुःख रचा नियति ने
तो दुःख को आसमान-सा ऐसा विस्तार दिया
कि ये सबके हिस्से आया
जैसे सबका अपना-अपना आसमान
वैसे सबके अपने-अपने दुःख
इस वृहदता में
अपने दुःख की लघुता महसूस कर
रोना-कलपना त्याग
जीवन जीने में जुट जाना ही सुख है
कि
सुख का
अलग से कहीं कोई अस्तित्व नहीं
दुःख में साथ मुस्कुराना ही सुख है!