$ 0 0 कुछ तो बात होगीकि अपनी बेचैनियों का हलहम कविताओं में जीते हैंघूँट-घूँटआँसूआँखों से रीते हैं! लिख लेनाकितनी ही बारअपने आप में ही हल होता हैकई बार हमलिखते हुएअंधकार से जीते हैं!चलते हुएसमाधानराहों में उग आते हैंचलती कलम कीस्याही से हमअपना बिखरा मन सीते है!एक भाषा हैजिसमें हम ख़ुद से बात करते हैउसकी लिपि बताती हैहमकितना बचे हैंऔर कितना बीते हैं!