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Channel: अनुशील
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लौ दीये की : कविता संग्रह

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निष्प्राण माटी सी थी भाव-लता


कविता के अवलंब ने 
भाव-लता को 
सुदृढ़ आधार दिया 


माटी का दीया रूप साकार किया 
और स्वयं लौ-सी प्रज्वलित हो उठी।


दीये की गरिमा लौ से है 
कि बुझे दीप की गति तो श्मशान ही है।


जब तक लौ है 
तब तक दीया अपने आप में 
अपनी ज़मीं अपना आसमान भी है।


ये जो, कविताएँ या कविता-सा-कुछ, जो भी है  
ये ही हासिल मेरे जीये की 
लौ दीये की।


मेरा पहला कविता संग्रह "लौ दीये की"बीते दिसम्बर प्रकाशित हुआ। आज बहुत समय बाद अनुशील तक लौटी तो सोचा रचनात्मक यात्रा का यह पड़ाव यहाँ भी दर्ज कर लूँ। यहाँ जहाँ डायरी में छूट गयी कविताओं को लिखने का सिलसिला शुरू हुआ था और आप सब के शब्दाशीश पा धन्य होता रहा था।

"लौ दीये की"किसी एक राही के मन का भी सुकून हो सके, किसी एक पाठक के लिए भी अंधेरा दूर करने का सबब हो सके तो इस पुस्तक के अस्तित्व में आने की प्रक्रिया सार्थक हो जाएगी।

कविताओं को अब उनकी अपनी यात्रा और उनका अपना आसमान मुबारक। मैं कहीं नेपथ्य से उस लौ को एकटक देखती स्वयं लौ होने की राह में अपनी तरह से अपना रास्ता तय करती रहूँगी।

-अनुपमा 


 

पुस्तक का लिंक

https://shwetwarna.com/shop/books/lau-diye-ki-anupama/

पुस्तक प्रकाशक के इस नम्बर  +91 8447540078 पर सम्पर्क कर के भी प्राप्त की जा सकती है। 




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