$ 0 0 एक बूँद आँसू एक व्यथा समंदर भर एक क्षण की कोई बात जो न भूले मन जीवन भर ऐसे कैसे-कैसे घाव समेटे हम जीते हैं जीते हुए घूँट ज़हर के कितने हम पीते हैं मन में जाने कैसा पर्वताकार दुःख है अब धीरे-धीरे उसी को कहने लगे हम-सुख है !