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Channel: अनुशील
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भाव भाषा का अद्भुत स्नेहिल नाता...!

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सुने, समझे जाने वाले शब्द, आखर के जोड़ भर हैं...
जो कह दी जाए, जो कहलवाए कोई, तो कविता हुई... ... ... !! ~ सुरेश चंद्रा ~


कितनी सुन्दर बात कही गयी है इन पंक्तियों में... यही क्यूँ उनकी हर पंक्ति, उनके हर शब्द सटीक और सुन्दर होते हैं... मंत्रमुग्ध कर जाते हैं और हम शब्दों का चमत्कार देख विस्मित हुए बिना नहीं रहते... हर बार, बार बार...!!!
इन दो पंक्तियों का आशीष मेरी किसी कविता को टिपण्णी स्वरुप दे गए थे सुरेश जी... ऐसी ही कई अनमोल पंक्तियाँ उनकी मेरे पास सहेजी हुई है... 
शब्दों की सुन्दरता, भावों के सौन्दर्य ने यूँ बाँधा कि आजीवन इनकी महिमा गाते रहेंगे हम... पढ़ते रहेंगे और उनकी लिखी बातों का सार समझने का प्रयास करते रहेंगे... !!
कहते हैं..., मन से लिखे गए भाव मन तक पहुँचते हैं, जो नम आँखों से लिखा गया हो... वो पढने वालों की भी आँखें नम करता है... स्नेह और श्रद्धा से आपके समक्ष झुकी हुई मेरी लेखनी सभी भावों को यथावत प्रगट करने में असमर्थ है... आपकी कलम की तरह प्रतापी जो नहीं है...
सुन रहे हैं न, सुरेशजी!



सपने की आँख मे, पलते हुए हम...
मद्धम सी आंच मे, जलते हुए हम...



स्वभाव है, सुनना, बुनना, गुनना...
स्वभाव के साँच मे, ढलते हुए हम...



वो सब जिनके लिए हम मर खपे...
उनकी ही आँख मे, खलते हुए हम...   ~ सुरेश चंद्रा ~



आपकी इन पंक्तियों ने आगे कुछ अनायास हमसे भी लिखवाया, जैसे आपने ही कहलवाया हो... देखिये तो कविता घटित हुई क्या...
आपकीऔर आपकी पंक्तियों से उत्प्रेरित मेरी कलम की धृष्टता सहेज लेते हैं आज यहाँ एक साथ... अनुशील के पन्नों के अनुपम सौभाग्य स्वरुप अंकित रहेगा यह पड़ाव सदा मन में भी और इन पन्नों में भी...



सपने की आँख मे, पलते हुए हम...
मद्धम सी आंच मे, जलते हुए हम...


स्वभाव है, सुनना, बुनना, गुनना...
स्वभाव के साँच मे, ढलते हुए हम...



वो सब जिनके लिए हम मर खपे...
उनकी ही आँख मे, खलते हुए हम...



कदम बढ़ते नहीं अब विराम चाहिए...
बोझ ये मन में लिए, चलते हुए हम...



धुंधला गयी है नज़र, आंसूओं से...
कुछ तो दिखे, आँख मलते हुए हम...



दर्द जो भी हुआ सह लिया मन पर...
बाग़ की खातिर, फलते फूलते हुए हम...


कितनी देर जब्त रहे, कब तक रुके नीर...
आंच में बर्फ की तरह, पिघलते हुए हम... 


वो सब जिनके लिए हम मर खपे...
उनकी ही आँख मे, खलते हुए हम...


***

जीवन बहुत बड़ी पहेली है... और शब्दों का संसार बहुत वृहद् है... अथाह है भावों का सागर... इस सागर के किनारे तक हमारी चेतना को ले जाने के लिए आपका कोटि कोटि आभार प्रिय कवि!!!

प्रेरणा बन प्रभात सा है खिल आता
भाव भाषा का अद्भुत स्नेहिल नाता... ... ... !! 


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