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Channel: अनुशील
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ज़िन्दगी हर कदम एक जंग है...!

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ये एक तस्वीर ::
नितिन्द्र बड़जात्याजी ने एक दिन यूँ ये तस्वीर हमें दी थी… इस विश्वास के साथ कि हम कुछ लिख पाएंगे इस पर… 
उनके शब्द::
आपके रचनाधर्मिता हेतु एक बहुत संजीदा विषय दे रहा हूँ..... दीपोत्सव के अवसर विद्यालय के विशिष्ट प्रज्ञाचक्षु बच्चों का रंगोली बनाते हुए चित्र…
***
ये उनका विश्वास ही फलित हुआ कि कुछ पंक्तियाँ यूँ ही आंसुओं की तरह बह आयीं, सोचा था कुछ सजा संवार कर लिखेंगे पर ऐसा कभी हमसे हुआ नहीं, शायद कभी हो भी नहीं.... इसलिए जो जैसे बह गए थे भाव वैसे ही सहेज लें यहाँ… यूँ हमारी नगण्य सी क्षमता पर विश्वास करने के लिए, आभार नितिन्द्र जी!
आपकी कर्तव्यनिष्ठा को नमन एवं विद्यालय को अनंत शुभकामनाएँ!




हमारी आँखें
नहीं देख पाएंगी
वो सौन्दर्य कभी
जो मन की आँखें रचती हैं 


कितने कोमल हैं ये रंग
कितनी दिव्य है यह रंगोली
इसका अनुमान भी नहीं लगा सकते हम
हमसे कहीं अधिक रंगीन होती है इनकी दिवाली इनकी होली 



आँखें जो भ्रम रचती हैं
उससे कोसों दूर हैं ये
निष्कपट निर्दोष है इनका भाव संसार
स्वयं साक्षात नूर हैं ये 



ये रंग
ये रंगोली
ये दिए...
ये रौशनी
ये सब आयोजन
एक शुभ त्योहार के लिए...



राम वनवास पूरा कर लौटे जो हैं घर
क्यूँ न रौशनी में डूबे फिर सारा धाम पूरा शहर
क्यूँ न शोर हो
क्यूँ न फिर जागते हुए ही भोर हो 



कि दीपावली है
दीपों की कतार है आत्मा के प्रकाश से झूम रही सारी गली है 



और राम
उस रंगोली पर मुग्ध हैं
जो मन की आँखों ने
मन से है बनाया
राम उस दीप पर
अपनी दिव्य मुस्कान बिखेर रहे हैं
जो उन नन्हें हाथों ने
है जलाया 



काश देख पातीं
वो आँखें रौशनी की किरण
जो प्रभु की आँखों की ज्योत बन
चमक रही है...!
विडम्बना तो है
पर उसके खेल निराले हैं...
शरणागतवत्सल की करुणा ही तो
रंगोली के रंगों में झलक रही है...!!



ये लिखते हुए
शब्द मेरे मौन हैं...
और आँख मेरी भर आई है...
ज़िन्दगी हर कदम एक जंग है...
ज़िन्दगी हर मोड़ पर तन्हाई है...!


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