$ 0 0 पहले भी लिखा है इसी शीर्षकसे आज फिर यूँ ही कुछ लिख जाने का मन है... आपकी प्रेरणा से आपके लिए...विचलित हो जाता है मनरो पड़ता हैसमस्यायों का एक समूचा व्यूहमुझे जब तब जकड़ता है सबसे हो दूर कहीं खो जाने कीइच्छा होती हैवजह बेवजहआँखें बेतरह रोती हैं दिशा कोई नज़र नहीं आतीपथ की पहचान नहीं हो पाती तब, जोखिल आता हैसमाधान बन कर...गूँज उठता हैस्वयंहरि नाम बन कर...वहपावन प्रभात हैं आपभईया, नेह आशीषों कीहमको मिलीअनुपम सौगात हैं आप यूँ ही लिख जाना थाबस शब्दों को आप तक आना थासो लिख गयीकविता ओझल ही रहती है हमेशाबस आज एक झलक सी उसकी दिख गयी सदा सर्वदा रहें आपयूँ ही उज्जवल दैदीप्यमानमिलती रहे दिग दिगंत तकपथ को आपसे पहचान!