भींगना क्या होता है... ? क्या बारिशों में भींग कर भींगा जा सकता है... या फिर एक सहज सुन्दर और सचमुच का भींगना वो भी होता है जब खिली धूप में उदासी ओढ़े हम दूर किसी आहट... किसी आवाज़ या फिर किसी अनकही बात से भींग जाते हैं...
और हाँ, ये "किसी"की परिभाषा नहीं हो सकती.. ये "किसी"कोई किसी होता ही नहीं ... ये होता है कोई ख़ास जिसकी नमी आपको भीतर तक नम कर जाती है... ऐसे में फिर बारिशों में चलते हुए भी हम आप नहीं भींगते कि पहले से ही जो सराबोर भींगा हुआ हो वो और क्या भींगेगा...!भींगे मन को भींगाती बारिश भली लग रही थी... ३ डिग्री टेम्परेचर, बादलों से पटा अम्बर, बूँदें, प्लेटफार्म... और इंतज़ार ट्रेन के आने का... यही कुछ तो था... यही कुछ तो होता है हमेशा जीवन में भी... ज़िन्दगी का इंतज़ार करते हुए खड़े रहते हैं हम इस संसार के प्लेटफार्म पर... लेट-सबेर ट्रेन को तो आना ही है... आएगी ही... जायेगी कहाँ...
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क्लास से लौटते समय ट्रेन का इंतज़ार करते हुए यूँ ही कुछ उकेर रहे थे... कुछ बूंदें... कुछ प्रश्न और उन प्रश्नों के जवाब में फिर गढ़ रहे थे कुछ प्रश्न... उत्तर होना हमें कहाँ आता है... सो हमारे प्रश्नों का उत्तर भी एक प्रश्न ही तो होता है न...
प्रश्नों की एक लम्बी श्रृंखला हैऔर असंख्य दुविधाओं के बीच उत्तर पा जाने...
उत्तर हो जाने की...असीम आस है...!
जीवन, टूट रही टहनियों का तरु के प्रति अप्रतिम विश्वास है...!
हम ढूंढ रहे हैं यहाँ वहाँ और वो हरदम हमारे करीब है... पास है...!
जीवन, एक दूसरे की नमी से
भींगने का नाम है...
भींगना और क्या होता है?
ये तुम्हारे हमारे मन को मिला विधाता का अनूठा वरदान है...!
और हाँ, ये "किसी"की परिभाषा नहीं हो सकती.. ये "किसी"कोई किसी होता ही नहीं ... ये होता है कोई ख़ास जिसकी नमी आपको भीतर तक नम कर जाती है... ऐसे में फिर बारिशों में चलते हुए भी हम आप नहीं भींगते कि पहले से ही जो सराबोर भींगा हुआ हो वो और क्या भींगेगा...!
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क्लास से लौटते समय ट्रेन का इंतज़ार करते हुए यूँ ही कुछ उकेर रहे थे... कुछ बूंदें... कुछ प्रश्न और उन प्रश्नों के जवाब में फिर गढ़ रहे थे कुछ प्रश्न... उत्तर होना हमें कहाँ आता है... सो हमारे प्रश्नों का उत्तर भी एक प्रश्न ही तो होता है न...
प्रश्नों की
उत्तर हो जाने की...
जीवन,
जीवन,
भींगने का नाम है...
भींगना और क्या होता है?
ये तुम्हारे हमारे मन को मिला