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हां ज़िन्दगी!


हर कविता की एक कहानी होती है... जैसे हम में से हर एक की एक कहानी होती है... अलग सी और फिर भी कुछ कुछ एक ही... अब ज़िन्दगी तो हममें से हर एक के लिए एक पहेली ही है न...  और इस पहेली से जूझते इसे सुलझाने के उपक्रम में चलते हुए हम सब सहयात्री ही तो हैं न... तो एक ही हमारा मन, जुदा जुदा फिर भी एक ही है हमारा... हम सबका भाव संसार...!!! वही इंसानियत और प्यार की कहानी... ज़िन्दगी यही तो होनी चाहिए... और क्या!
ये फिर उसी डायरी का एक पन्ना, ९६ में लिखी गयी कभी... तब हम नाइन्थ में थे... वो समय यूँ ही याद है, कि यादें भी तो सभी स्कूल से ही सम्बंधित है... किस क्लास में थे उस वर्ष, यही तो है तब की यादों का पारावार!
श्वेताव्यस्त हो तुम, नहीं तो आज फिर सुनाते तुम्हें यह कविता... याद तो होगी ही तुम्हें ये कुछ कुछ धुंधली सी...!


हमें किस्मत ने बार बार मारा
हाशिये पर लटकाए रहा समाज का अखाड़ा
अधमरे हो कर पड़े रहे
फिर भी तेरी आस में खड़े रहे 

क्यूंकि हम तुम्हें प्यार करते हैं
हां ज़िन्दगी! 

फूटते बुलबुलों में भी हम 

तेरे अक्स का ही दीदार करते हैं!



बाढ़ अकाल अशांति सम विरोधियों से लड़ाईयां लड़ी
घोर निराशा के क्षणों में भी सूने आँचल में मोतियाँ जड़ी
अभाव का दंश झेल कंकाल बने रहे
फिर भी हम साँसों पर मेहरबान ही रहे
क्यूंकि हम तुम्हें प्यार करते हैं
हां ज़िन्दगी! 

साँसों की डोर को हम 

अपना इकलौता यार कहते हैं!


जान पर खेल... खेला करते हैं मौत का खेल हम
कठिनाईयों को हँसते हुए गए झेल हम
कोल्हू के बैल सम जुते रहे
फिर भी लगाते रहे कहकहे
क्यूंकि हम तुम्हें प्यार करते हैं
हां ज़िन्दगी! 

मुस्कराते हुए सब कुछ सहते जाने को ही हम 

सार कहते हैं!



चाहे-अनचाहे दुःख दर्द हृदय से लगाया
गाहे-बगाहे त्रासदियों का जमघट भी खूब रुलाया
घटना दुर्घटना से दिल बहुत दहला
फिर भी लेते ही हैं हम मृगतृष्णा से खुद को बहला
क्यूंकि हम तुम्हें प्यार करते हैं
हां ज़िन्दगी! 

मृग मरीचिकाओं से बस हम 

तुम्हारी ही खातिर लाड़ करते हैं!


घोर व्याधियों ने आकर घेरा
ईश तत्व हो गया विदा... शरीर प्राण हुए दुःख अशांति का डेरा
बहने को बह रहे हैं सब आसुरी झोंकों संग
फिर भी अचेतन रूप से संघर्षरत है सहेजने को अपनी मिट्टी का उड़ता रंग
क्यूंकि हम तुम्हें (तुम्हारे तत्व सहित...?) प्यार करते हैं
हां ज़िन्दगी! 

लाख पतन के बावजूद अंतस से हम 

मानवता को ही अपना सहज श्रृंगार कहते हैं!


भले तत्व विस्मृत हो जाएँ... पर मिटा नहीं करते
यदि वक़्त के वीराने देते हमें मोहलत, 

तो शान में तेरे ऐ ज़िन्दगी! 

हम बेहतर छवि गढ़ते...!
काश! होते जो तुमसे कुछ और जुड़े हम...

तो ज़िन्दगी! 

हम तुम्हें तुम्हारी नज़र से पढ़ते...!!



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