हर कविता की एक कहानी होती है... जैसे हम में से हर एक की एक कहानी होती है... अलग सी और फिर भी कुछ कुछ एक ही... अब ज़िन्दगी तो हममें से हर एक के लिए एक पहेली ही है न... और इस पहेली से जूझते इसे सुलझाने के उपक्रम में चलते हुए हम सब सहयात्री ही तो हैं न... तो एक ही हमारा मन, जुदा जुदा फिर भी एक ही है हमारा... हम सबका भाव संसार...!!! वही इंसानियत और प्यार की कहानी... ज़िन्दगी यही तो होनी चाहिए... और क्या!ये फिर उसी डायरी का एक पन्ना, ९६ में लिखी गयी कभी... तब हम नाइन्थ में थे... वो समय यूँ ही याद है, कि यादें भी तो सभी स्कूल से ही सम्बंधित है... किस क्लास में थे उस वर्ष, यही तो है तब की यादों का पारावार!
श्वेताव्यस्त हो तुम, नहीं तो आज फिर सुनाते तुम्हें यह कविता... याद तो होगी ही तुम्हें ये कुछ कुछ धुंधली सी...!
श्वेताव्यस्त हो तुम, नहीं तो आज फिर सुनाते तुम्हें यह कविता... याद तो होगी ही तुम्हें ये कुछ कुछ धुंधली सी...!