पुराने पन्ने पलटना उन दिनों तक लौटना है जब उन पन्नों पर यूँ ही कुछ उकेर दिया जाता था... स्कूल के दिनों की तारीखें हैं इस डायरी में, डायरी की अवस्था ठीक नहीं है... कि संभाल कर रखी ही नहीं गयी, पर यादें और अक्षर पूर्ववत हैं... यादों को पुनः जी लेते हैं और पंक्तियों को यहाँ उतार लेते हैं... कि यादें और कवितायेँ... जो भी हों, जैसी भी हों, सहेजी तो जानी ही चाहिए...
उदीयमान सूरज की
झलक पाने को,
आया समग्र संसार
शीश नवाने को...
सूर्योदय के बाद
शुरू होता है संघर्ष,
उषा काल के माधुर्य में
किसने जाना अभावों का चरमोत्कर्ष...!
क्षण प्रतिक्षण
बढ़ता जाता ताप,
तिस पर प्रपंचों की
गहराती पदचाप...
तमतमाता हुआ
सूरज का रूप,
भरी दुपहरी की
प्रचंड धूप...
और इन सबके बीच
अपना अपना सत्य तलाशते हम सब,
धूप में छाँव तलाशते
अब तब...
बीतती हुई बेला में
सूरज का ठंडाता कोप,
और हमारा हर पल देना
अपनी जिम्मेदारियां औरों पर थोप-
यह सब
दिन भर के व्यापार में है शामिल,
कभी कभी करनी नहीं रहने देती
सर उठाने के भी काबिल...
भाग दौड़ में भले-बुरे का चिंतन
विस्मृत हो चला,
जीवन का दिवालियापन
हमें अंतिम बेला में खूब खला...
सूरज अपना सामान बाँध
करने लगा कूच करने की तैयारी,
बस दिवस भर की ही
तो है उसकी पहरेदारी...!
दोपहर का ताप
अब इतिहास हो चला,
बूढा दिवस
सांझ की चादर ओढ़ ढला...!
दिनभर की कमाई
समेटते हुए फुटपाथी,
जीवन की पाठशाला के
सभी जिज्ञासु सहपाठी...
घोंसले को लौटता
परिंदों का समूह,
अन्धकार का
फैलता ही जाता व्यूह...
बेजान सी सड़कें
हो कर कोलाहल से हीन,
एक खालीपन से
बुरी तरह हो क्षीण...
ढ़लते सूरज को
विदा करती है,
अनवरत कर्मरत रहने का
दम भारती है...
अब दिया सलाई की ओर
हो लिया जाए मुखातिब,
सूरज की विदाई के बाद भी
अँधेरे को गले लगाना तो नहीं ही है न वाजिब!
बस दिन भर की दौड़ भाग के बाद
अब मिटाई जाए थकान,
दिन भर भागना और सांझ ढले सिमटना...
यही तो है किस्सा-ए-सुबहो शाम!
फुर्सत कहाँ कि
चाँद का नज़ारा करें,
अवकाश कहाँ कि
खुले गगन के विस्तार को निहारा करें...
सिमटना-कटना ही
आज दस्तूर है,
सुबहो शाम ये हश्र देख
रोने को मजबूर हैं!
कल फिर
सूरज निकलेगा,
लेकिन कल भी क्या
किस्सा रुख बदलेगा...???
यह सवाल ही
बेमानी है,
आखिर गंगाजल को भी तो लोग
कहने लगे आज पानी है!
पतनोन्मुख परिवर्तन की
परंपरा अब आम हो गयी,
नवनिर्माण का विगुल नहीं बजा
और आज फिर शाम हो गयी!
फिर भी हमें लगता है
कल का सूरज
निराला होगा,
तमाम वीराने के बावजूद...
हमें विश्वास है
कल उजाला होगा!