जब शब्दों से ज्यादा
उनके बीच का
मौन बोलता हो...
जीवन का रहस्य
जब मन में
बेचैनी घोलता हो,
कोई एक भाषा मन की
तब मन में ही
मुखर होती है...
कह नहीं सकते
किसके प्रताप से
किसकी ज्योत प्रखर होती है!
परस्पर होते हैं
कुछ आदर स्नेह के प्रतिमान...
कुछ भाव
एक से होते हैं,
मिलता है संबल
जाने कहाँ से दृगों को...
कुछ मन को छू जाता है
और हम नयन भिगोंते हैं!
नम आँखों से
फिर एक प्रार्थना
महकती है...
ईश्वर सी ही
कोई अनन्य छवि
झलकती है,
और घुटनों पर बैठी आत्मा
हाथ जोड़े
लीन हो जाती है
प्रार्थना में शब्द नहीं होते
कहते हैं,
शब्दों से प्रार्थना क्षीण हो जाती है!
वो सब सुनता है
मौन भी शब्द भी...
प्रभु की कृपा करती है
हमें भावविभोर भी और स्तब्ध भी,
उसकी लीला
वो ही जाने...
इंसान हैं हम
बस भावों से ही जाएँ पहचाने!
इतना ही परिचय हो अपना
इतनी ही हो
अपनी बिसात...
आज सुबह सुनहरी दी है प्रभु!
ऐसे ही देना
कल का भी प्रभात,
शब्द बोले
और दो शब्द के बीच का
मौन भी बोले...
बस एक क्षण
ठहर, ज़िन्दगी!
हम ख़ुशी ख़ुशी आज रो लें... ... ... !!