बहुत उदास है मन... धीरे धीरे सुबह हो रही है... आसमान में बादलों का जमघट है... वही कहीं थोड़ी लाली भी है...! क्या है अम्बर के मन में? आज वह सूरज के साथ उगने वाला है या बादलों के पीछे छुपे हुए वहीँ से हमारी बेचैनियों को तकने वाला है...
रोते हुए लिखो तो ये नहीं समझ आता कि शब्द हैं या आंसू जो बरस रहे हैं पन्ने पर... जो भी हो, अब बरसना है तो बरसेगा ही न अम्बर...!
हर सुबह एक सी नहीं होती... एक सा नहीं होता हर प्रभात... कुछ तो होता है जो हर क्षण बदलता है और हम उसे कभी नहीं समझ पाते हैं, न ही हमारी दृष्टि कभी उस हो रहे परिवर्तन तक पहुँच पाती है... मन की दुनिया अजीब ही है!
बस हृदय कह उठता है... प्रार्थना जैसा ही कुछ कि बदल रहे हर क्षण में कुछ एक श्रद्धा विश्वास के प्रतिमान तो हों जो कभी न बदलें... जाना जरूरी हो अगर तो अच्छा क्षण एक पल ठहर यह कह कर भी तो जा सकता है न... कि घबराना मत, जा कर आता हूँ, जल्द ही! पर ऐसा कहाँ होता है... वो कह कर नहीं जाता, कह कर आया भी कब था...? जब आना है आएगा जब जाना है जाएगा, उसकी मर्जी... हमारी तो नियति बस इंतज़ार ही है न...!