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Channel: अनुशील
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शब्द सेतु!

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बहुत उदास है मन... धीरे धीरे सुबह हो रही है... आसमान में बादलों का जमघट है... वही कहीं थोड़ी लाली भी है...! क्या है अम्बर के मन में? आज वह सूरज के साथ उगने वाला है या बादलों के पीछे छुपे हुए वहीँ से हमारी बेचैनियों को तकने वाला है...
रोते हुए लिखो तो ये नहीं समझ आता कि शब्द हैं या आंसू जो बरस रहे हैं पन्ने पर... जो भी हो, अब बरसना है तो बरसेगा ही न अम्बर...!
हर सुबह एक सी नहीं होती... एक सा नहीं होता हर प्रभात... कुछ तो होता है जो हर क्षण बदलता है और हम उसे कभी नहीं समझ पाते हैं, न ही हमारी दृष्टि कभी उस हो रहे परिवर्तन तक पहुँच पाती है... मन की दुनिया अजीब ही है!
बस हृदय कह उठता है... प्रार्थना जैसा ही कुछ कि बदल रहे हर क्षण में कुछ एक श्रद्धा विश्वास के प्रतिमान तो हों जो कभी न बदलें... जाना जरूरी हो अगर तो अच्छा क्षण एक पल ठहर यह कह कर भी तो जा सकता है न... कि घबराना मत, जा कर आता हूँ, जल्द ही! पर ऐसा कहाँ होता है... वो कह कर नहीं जाता, कह कर आया भी कब था...? जब आना है आएगा जब जाना है जाएगा, उसकी मर्जी... हमारी तो नियति बस इंतज़ार ही है न...!

सूरज के उगने से पहले
कितने कितने रूप बदलता है अम्बर
काश! हम वो सारे रंग
समेट पाते अपने आँचल में
तो, दिखाते तुम्हें
कैसा होता है क्षितिज पर रंगों का संसार
समझ पाते फिर तुम भावों का पारावार!


बरसने से पहले
कितना धुंधलापन छाता है
आँखों का पानी ही है न
आंसू जो कहलाता है
खरा सा कोई रंग फिर नयनों में मुस्काता है
काश! देख पाते तुम वो धार
समझ पाते फिर तुम भावों का पारावार!



हमने देखा है जीवन में
जीवन को जीवन से जुदा होते
रोते हैं हम भले ही
पर नहीं देख सकते हम तुम्हें रोते
एक सहज सी मुस्कान खिली हो तट के उस पार
काश! समझ पाते तुम इन बातों का सार
समझ पाते फिर तुम भावों का पारावार!

***

आज लिखना कुछ नहीं था... या शायद कुछ और लिखना था... पर लिख गयी आसमान की रंगत कुछ यूँ, तो सहेज ली जाए यहाँ... कि जब पहुंचना संभव न हो... तो ये शब्द ही सेतु बनते हैं... ... ... !!


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