कई रातें जगे हुए बीतीं हैं तुम्हारी कविताओं के साथ कई हजार शब्द तुम्हारे मेरे मन में उमड़ते घुमड़ते रहते हैं
कितने ही आंसू साथ रोये हैं हम
झांकना कभी बीते समय में फुर्सत से तो जगमगा उठेंगे वो आंसू
सच है अनायास ही होते हैं कुछ प्रयास... हम देख नहीं पायेंगे कभी पूर्व निर्धारित घटनाक्रमों का आकाश...
ये समय ही है जो हमें जोड़ता है, फिर हमारा जुड़ाव समयातीत हो जाता है! उबड़ खाबड़ जीवन की राहों में कोई विरला ऐसा होता है जो हमारे लिए गीत हो जाता है!!
मेरे मन में थी कहीं की कोई एक तीव्र प्रेरणा जो त्वरित तुमसे जोड़ गयी
और तेरी विराट नज़रों का रूख मेरी ओर मोड़ गयी
ईश्वरीय सा कुछ जब यूँ घट जाता है जीवन के प्रति स्नेह और प्रगाढ़ हो जाता है
ये परिचय के मोती... ये भावों के रजकण जरा चुन लें हम, कहती रहे वाणी और भावविभोर सुन लें हम... ... ... !!
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आवाज़ को तरसते हुए जब कोई आवाज़ मिल जाए कहीं तो शब्द फिर मिलते नहीं...! बिन शब्दों के लिखते रहे, फिर प्रेरणा ने हाथ पकड़ कर लिखवाये शब्द और कहा- जोड़ कर सहेज लो, यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव की सुगंध तो इन पन्नों में होनी ही चाहिए...! सो बस ऐसे ही लिख गयी कविता... एक बहुत पुराने अनन्य मित्र के लिए. मित्रता शायद सदियों पुरानी हो, बीच में विस्मृत हो चली थी... फिर मिल गयी और अपने पूरे प्रताप के साथ खिल गयी!