लिख जाने पर सुकून मिलता है, कह जाने पर मन हल्का हो जाता है लेकिन एक वो भी बिंदु है जब इतना उद्विग्न होता है मन कि न लिखा जाता है न कुछ कह पाने की ही सम्भावना बनती है... बस महसूस हो सकती है हवा की तरह... कुछ उदासियाँ ऐसी भी होती हैं!
कारण ज्ञात भी होता है
और अज्ञात भी...
एक ही समय पर दोनों बात होती है,
एक ओर दिन खड़ा रहता है
सकुचाया सा...
और रात भी साथ होती है!
दिन के पास ढ़ेरों काम हैं
रात अपनी है...
खुद अपने पास होने के ढ़ेरों पल देती है,
जीवन की पटरी पर
कोई जतन से लौट आये मन की रेल...
ये रात ही है जो हमें आने वाला कल देती है!
वो जो एक चाँद है वहाँ पर
उसने नाव सा आकार लिया हुआ है...
कुछ क्षण में बादलों की लहर में ओझल हो जाएगा,
जाने किस राह पर है किस ठौर जाना है उसे
हमें पता है बीतते वक़्त के साथ...
उसके प्रति ये अनन्यता का भाव और प्रबल हो जाएगा!
जो जोड़ती है डोर कहीं से
उसको देखने की जिद्द जाने देते हैं...
तर्क-वितर्क की यहीं तो मात होती है,
कारण ज्ञात भी होता है
और अज्ञात भी...
एक ही समय पर दोनों बात होती है!
दिन जब नहीं होता साथ, रात साथ होती है!