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Channel: अनुशील
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सौन्दर्य के प्रतिमान!

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देश कोई हो, भाषा कोई भी हो, भावनाएं एक सी ही होती हैं. "वसुधैव कुटुम्बकम" का सिद्धांत सर्वोपर्री है! इस भाव की  आत्मा से पहचान हो जाती है जब ये महसूस करते हैं कि हमारे दुःख एक हैं, हमारी खुशियां एक सी ही हैं, ख़ुशी और गम दोनों में ही हमारी आँखों का छलक आना एक सा है. हम सब एक से हैं और एक ही कुटुंब से हैं, एक ही धर्म है हमारा और वो है इंसानियत. एक ही भाषा है हमारी और वो है हृदय की भाषा. 
इस हृदय की भाषा ने बहुत मदद की तब जब हमारी भाषाओँ ने हार मान ली. हमें स्वीडिश नहीं आती थी तब, और विश्व के विभिन्न कोनों से आये बहुत से ऐसे भी लोग थे मेरी क्लास में जिन्हें हिंदी तो नहीं ही आती थी, अंग्रेजी भी बिल्कुल नहीं आती थी और न ही उनकी भाषा का हमें ज्ञान था! कैसे होता संवाद? पर संवाद हुए, मन की भाषा ही रही होगी जिसने पुल बनाये होंगे दो विभिन्न भाषियों के बीच जबतक की हम टूटी फूटी स्वीडिश न बोलने लगे संपर्क भाषा के रूप में. 
अपनी भषा के प्रति जो निष्ठा यहाँ देखी वह प्रशंसनीय है, शुरू शुरू में बहुत खीझ होती थी कि कहाँ चले आये, कुछ समझ ही नहीं आता लेकिन यह बात समझनी भी तो हमें ही थी कि हम दूसरी जगह आये हैं तो उस जगह के अनुसार स्वयं को तैयार तो हमें ही करना होगा और यहाँ शिकायत नहीं की जा सकती क्यूंकि हमारी सहूलियत के लिए भाषा सीखाने का समुचित इंतजाम कर रखा है इस देश ने! हमने स्वीडिश क्लासेस में जाना शुरू किया और धीरे धीरे कुछ कुछ चीज़ें आसान होती चली गयीं! बाहर से आये लोगों के लिए सरकारी तंत्रों द्वारा बड़ी सुन्दर व्यवस्था है स्वीडिश क्लासेज की. कोई भी सीख सकता है बस थोडा सा समय ही तो देना है अपने पास से हमें! सभी को बहुत अच्छी अंग्रेजी आती है यहाँ पर कोई अंग्रेजी बोलता नहीं है, लोग बात अपनी भाषा में ही शुरू करते हैं, सामने वाला समझने की असमर्थता व्यक्त करे तो फिर बोलते हैं अंग्रेजी! और जब हम कभी दो भारतीय यहाँ टकरा जाते हैं तो अक्सर ऐसा होता है कि बात अंग्रेजी में ही शुरू करते हैं, फिर हिंदी में पहुँचते हैं. भाषा के प्रति यही मूलभूत अंतर है हमारी सोच में. हिंदी नहीं बोल पाने को शर्मिंदगी नहीं बल्कि एक गर्व के विषय सा ट्रीट किया जाता है हमारे यहाँ, बस  इन्हीं छोटी छोटी मानसिकताओं को बदलना है, भाषाएँ सभी सीखनी है, सब भाषाएँ बोलनी भी हैं पर मूलतः हमें हमेशा हिंदी में होना है! 
जो हमारी पहचान है, उसी से पहचाने जाएँ हम  
बोलें अंग्रेजी भले ही, पर अंग्रेजी के हो न जाएँ हम 
अपनी भाषामें होना ही सकल सौभाग्य व सौन्दर्य है!
***
गोल्डन हॉल के विषय में लिखते हुए कल वाली पोस्ट को आगे बढ़ाना था और हम सुबह के कोहरे को देखते हुए खो गए उन दिनों में जब यहाँ आये थे और स्वीडिश भाषा ने हमारे लिए अच्छी खासी मुश्किलें खड़ी कर दी थी. दुकानों में सामान पहचानना भी कठिन था, अपनी चीनी और अपने नमक ने दूसरा ही स्वरुप और नाम धर लिया था यहाँ, अब कैसे पहचानते हम! खैर, अब आगे बढ़ते हैं गोल्डन हॉल की ओर… 
यह है प्रवेश द्वार, यहाँ से भीतर की दुनिया सुनहरी है, इस द्वार के भीतर सबकुछ स्वर्णिम है! उज्जवल प्रतिमान, इतिहास का अंकन व भविष्य के लिए एक गहरी अंतर्दृष्टि इस भव्यता को और भव्य बनाते हैं. कलाकारों ने निश्चित समय में उत्कृष्टता के प्रतिमान गढ़े. इन प्रतिमानों की आलोचनाएं भी हुईं और अपनी कला को सिद्ध करने हेतु कलाकारों ने अपने तर्क भी रखे. ये हम पर है कि कैसे मूल्यांकन करते हैं, हमारे लिए आलोचनाओं का महत्व  है या हम कलाकार के तर्क को अधिक उपयुक्त मानते हैं. 
४५ मिनट के साथ ने इस भद्र महिला को हमसे जोड़ ही तो दिया था, इसकी बातें कितनी भली लग रही थीं, तथ्यों को प्रगट कर मौन हो जाती और यह कहना नहीं भूलती… "इट्स अप टू यु हाउ यू जज़!"
गोल्डन हॉल में सामने वाली मुख्य दीवार के पास खड़े हुए यह स्वर्ण कारीगरियों के बारे में बता रही है, अर्थ खुल रहे हैं हमारे समक्ष और हम अभिभूत हुए जा रहे हैं. 
दीवार पर मुख्य आकृति मैलरेन सरोवर की देवी की है. यह कलाकार की विशुद्ध कल्पना है लेकिन कितनी सुन्दर कल्पना है! हमें माँ गंगा और यमुना मैया  याद हो आये. ये कैसी विरल समानता देखने को मिली, मन अभिभूत हो गया कि  हमारी तरह  इनकी संस्कृति में भी नदियों सरोवरों को माँ व देवी कहते हैं!
लेक मैलारेन की देवी की यह कलाकृति शांतिप्रिय स्वीडन का प्रतिनिधित्व करती है. प्रथम विश्व युद्ध के बाद इसका अस्तित्व में आना इस सोच के तहत हुआ कि यह शान्ति की देवी पूरब और पश्चिम का आवाहन कर सबको एक विश्व का नागरिक होने का भान कराते हुए शान्ति की स्थापना का प्रतीक बनेगी!
देवी के दोनों ओर क्रमशः पश्चिम और पूरब का प्रतिनिधित्व करती आकृतिया हैं और बीच में लेक मैलारेन की देवी स्वयं समंव्यय का प्रतीक बन कर विराजमान हैं!
दाहिने तरफ हाथी घोड़े पालकी द्वारा पूरब को दर्शाया गया है और बायीं तरफ पश्चिम के प्रतीक हैं जैसे कि स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी व् अन्य टावर्स! ऊपर की तस्वीर में गाइड बायीं तरफ ही खड़ी है! 
ये तो तथ्य हो गए, अब बात करें आलोचना की. कहते हैं उस दौरान इस बात को लेकर काफी विवाद हुआ कि देवी सुन्दरता के प्रतिमानों पर खरी नहीं उतरतीं, उनकी आखें, उनकी हथेलियाँ और उनके पाँव स्त्रियोचित नहीं हैं, सौन्दर्य के प्रचलित मुहावरों को नकारती यह तस्वीर लोगों को स्वीकार्य नहीं थी. आखिर कैसे वे सुन्दर से देश के प्रतिनिधि स्वरुप एक "अजीब" सी देवी को स्वीकार लेते जो उनके सौन्दर्य की परिभाषा से मेल न खाती हो!
कलाकार ने आखिर कुछ सोच कर ही तो यह स्वरुप दिया होगा, उनके पास तर्क थे अपनी कला के पक्ष में और कालांतर में माने भी गए. आलोचना के रास्ते अब भी खुले हैं और तर्क भी अपनी जगह खड़े हैं, आप इन्टरप्रेट करने को स्वतंत्र हैं!
कलाकार का कहना था कि देवी की आँख का बड़ा होना इस बात का प्रतीक है कि वह नज़र रख सकें स्थितियों परिस्थितियों पर. सभी बातों पर नज़र रखने के प्रतीक के रूप में आँखों को बड़ा होना ही होगा, नज़र पैनी होनी ही होगी अन्यथा वे कैसे स्थिति को संज्ञान में लेते हुए विपरीत परिस्थितियों में सबकी रक्षा कर पायेंगी! हाथ और पैरों का अपेक्षाकृत बेढ़ब होना भी यूँ तर्क द्वारा सिद्ध किया गया कि देवी की सुन्दरता व सार्थकता छुई मुई सी कोई कन्या होने में नहीं है. उनका उद्देश्य और उनकी ताकत ही उनका सौन्दर्य है, विकसित हो वह नज़र जो उनका सौन्दर्य देख सके! मस्तक पर सात लटों सा कुछ बना हुआ है, आलोचना का एक विषय यह भी था कि ये बाल सा कुछ यूँ दर्शाना देवी को और कुरूप बना रहा है. कलाकार ने अपना पक्ष रखा, दरअसल ये बालों को नहीं बल्कि लेक मैलारेन की धाराओं को दर्शाने का प्रयास है. सरोवर का सौन्दर्य तो उसकी धारा ही है न, तो देवी की आकृति बिना अपनी धारा के कैसे सम्पूर्ण हो सकती है!
पूरा गोल्डन हॉल जगमगा रहा है. दीवारों पर इतिहास के प्रतिमान अंकित हैं, शक्तिशाली स्त्री पुरुषों की आकृतियाँ हैं क्रमशः पुराने समय से प्रारंभ हो कर वर्तमान समय के प्रतिनिधियों तक का अंकन है. 
इस हॉल का नामकरण १८ लाख से अधिक टाइल्स से बने स्वर्णिम सजावटी मोज़ाइक के नाम पर हुआ है Gyllene Salen अर्थात गोल्डन हॉल. मोज़ाइक में स्वीडिश इतिहास के  रूपांकनों का अद्भुत प्रयोग है.
सभी यात्री तथ्यों को गुनते हुए, गाइड को सुनते हुए इस दिव्य हॉल की गरिमा से अभिभूत लग रहे थे, तस्वीरें लेने का उत्साह था, देवी के प्रति आदर भरा अनुग्रह था और विश्वबंधुत्व की भावना के प्रति प्रतिबद्धता थी. सभी कारक मिल कर सभी के मुख पर एक शान्ति व संतोष का भाव ला रहे थे और कदम गाइड के पीछे पीछे चल पड़ते थे…
मुख्य गोल्डन हॉल भ्रमण के बाद अब भी बहुत कुछ शेष है… टावर, परिसर व काउंसिल हॉल! लेकिन अभी रुकना होगा, घड़ी पर नज़र गयी, नौ बजने को हैं! आज खिड़की से धूप ने आकर टोका नहीं तो हम इसी भ्रम में हैं कि ६-७ बजते होंगे! आज बादल घिरे हुए हैं आसमान पर ठीक वैसे ही जैसे उस दिन थे जब हम सिटी हॉल गए हुए थे. 
उस दिन सिटी हॉल से ली गयी एक तस्वीर… 
बादलों का जमघट है, वहीँ कहीं पीछे चमकता सूरज है, डोलती जीवन नैया है और नैया से खेलती लहरें हैं….! 


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