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Channel: अनुशील
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एक जीवन यात्रा और उसमें कितनी यात्राएँ

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अटक जाती है साँस कभी
कभी जीवन भी अटक जाता है


अटकी हुई बात कोई
घुटन हो  


कंठ में ही नहीं 

रोम-रोम जब रुदन हो  


ऐसे में
बस बेवजह कहीं भटक पाने की
सहूलियत दे ज़िन्दगी 


और इस बेवजह में
कोई वजह निकल आए
यात्रारत चेतना की आँखें सजल हो जाए 


फिर
और क्या चाहिए ही ज़िन्दगी से!


सफ़र हो
लौट आने को डगर हो 


यूँ हो जीवन
यूँ ही जीवन हो!


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