$ 0 0 अभी शोक में हूँ।हर रिश्ते की एक उम्र होती हैउसके बाद उसका मरना तय हैमैंने ऐसे कई मरे हुए रिश्तों का श्राद्ध किया है अभी शोक में हूँ।---शोक कैसा?!हर रिश्ताएक रोज मर ही जाता हैभले कितना ही अनन्यक्यों न रहा होआख़िरी गतिअन्तिम परिणति यही हैअवश्यंभावी का शोक कैसा?!यहअसमय मर गये रिश्तों कामातम है।---यह जीवन है जीवन के बाद भी कुछ रिश्ते साँस लेते हैंये आभास होतो जीवन रहते टूटे रिश्तों का शोक न होगाकि जो टूट गए वो रिश्ते कभी अपने थे ही नहीं एक रोज़ हम ही नहीं होने हैं इस संसार मेंरिश्ते निभाने कोया रिश्तों से किनारा करने को फिर कैसी कड़वाहट?!जो जब तक चला ठीक थाअब जो खो चुका तो यह भी ठीक हैनिश्चित रूप से एक दिन खो जाने वाले जीवन मेंकिसी भी टूटन-बिखरन के लिएसंताप की कहीं कोई जगह होने की गुंजाइश ही नहीं हैनहीं होनी चाहिए!