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Channel: अनुशील
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रिश्तों के बियाबान में लहुलूहान चेतना

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अभी शोक में हूँ।


हर रिश्ते की एक उम्र होती है
उसके बाद उसका मरना तय है
मैंने ऐसे कई मरे हुए रिश्तों का श्राद्ध किया है 


अभी शोक में हूँ।


---


शोक कैसा?!


हर रिश्ता
एक रोज मर ही जाता है
भले कितना ही अनन्य
क्यों न रहा हो


आख़िरी गति
अन्तिम परिणति यही है
अवश्यंभावी का शोक कैसा?!


यह
असमय मर गये रिश्तों का
मातम है।


---


यह जीवन है 


जीवन के बाद भी कुछ रिश्ते साँस लेते हैं
ये आभास हो
तो जीवन रहते टूटे रिश्तों का शोक न होगा
कि जो टूट गए वो रिश्ते कभी अपने थे ही नहीं 



एक रोज़ हम ही नहीं होने हैं इस संसार में
रिश्ते निभाने को
या रिश्तों से किनारा करने को 


फिर कैसी कड़वाहट?!


जो जब तक चला ठीक था
अब जो खो चुका तो यह भी ठीक है


निश्चित रूप से एक दिन खो जाने वाले जीवन में
किसी भी टूटन-बिखरन के लिए
संताप की कहीं कोई जगह होने की गुंजाइश ही नहीं है


नहीं होनी चाहिए!





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