ज़िन्दगी ने
नग्न सत्य दो टूक शब्दों में
कह दिया
मन-वचन-कर्म से
हमें और भी विपन्न
कर दिया
हम
वास्तविकता देख-सुन
बिफर गए
मन-प्राण ठगे से थे
जाने सारे मूल्य
किधर गए
ऐसे में
हमें टूटता देख
ज़िन्दगी ने ही सम्भाला
हमें
हमारी आंतरिक शक्तियों का
दिया हवाला--
ठोस धरातल पर किए गए संकल्प
तुम्हारी जर्जर जीवन नैया
अवश्य खे पाएँगे
समय एक सा नहीं रहता
ये दोष-दंश
कल कहीं नहीं रह जाएँगे
जो है
जैसा है
निबाहती चलो
इस भवसागर में सुख-शांति कहीं नहीं है
जो दे रही है नियति
उसे सहर्ष स्वीकारती चलो !