$ 0 0 सुबह की उजासकुछ मौन प्रार्थनाएँ प्रतिबिंब में परिलक्षित स्पंदनतट पर बैठे जीवन कीघोर यातनाएँ सबचलते कदमथाह रहे हैंउचटे हुए समय में भीजो विशुद्ध प्रवाह रहे हैं !