$ 0 0 धूप उतर रही थी भीतरबाहर उमस भरी छाँव थी सब अपनी तरह सेअपनी-अपनी दिशा मेंगतिमान थे वक़्त कहीं ठहर गया थावैसे ही जैसे पेड़ों की डालियाँ अनासक्त स्थिर सी थीं हवा थमी हुई थी ऐसे में जो दीप जलाते तो एक ही बार में जल जातेहवा के वेग से बाती को अनावश्यक संघर्ष नहीं करना पड़ता जैसा कि सामान्यतः होता है पर आज हमें बाहर नहींमन के भीतर एक दीप जलाना था बाहर जो रोज़ जलाते हैं उस दीपक से प्रेरणा लीऔर प्रतिकूलताओं की आँधियों के बीचमन में एक दीप जलाया जून नेजाते हुएयूँ बाती को सांद्र किया !