ख़ुद को ओढ़ा
ख़ुद को ही बिछा लिया
अपना कंधा ही था रोने के लिए
उसी को आधार किया
इस तरह हमने रात के समंदर को पार किया
जब बहुत अकेला पाया ख़ुद को
स्वयं ही अपने मन को हृदय से लगा लिया
समझावन के अपने गढ़े हुए मंत्र थे
उन्हें दोहरा सकल नकारात्मकता का संहार किया
इस तरह हमने गहराते धुँधलके को पार किया
वो भाव-भाषा की दुनिया में विपन्न है
क्यूँ भला हमने उसकी कमियों को अपने हृदय से लगा लिया
उदार हो कर उसकी सीमा स्वीकार ली
और सकल विडंबनाओं को अपने सर मढ़ने से ख़ुद को निस्तार किया
रिश्तों की वैतरणी में डूबने-उतरने को ही हमने जीवन का सार किया
कि
वहीं का कोई सिरा
वहाँ तक ले जाएगा
कि
वैतरणी पार किए बिना
वो धाम कहाँ से आएगा!