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Channel: अनुशील
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पीड़ा का अर्थशास्त्र

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मृत्युतुल्य कष्टों का
एक अंतहीन सिलसिला है


ज़िन्दगी!
तू बस दुःख-दर्द की
एक अदद शृंखला है


इस शृंखला के बिना
तुम तुम नहीं हो 


और हम भी हम नहीं 


कि
दुःख ही
हमसे हमारी पहचान कराते हैं!


प्रार्थना में बहते आँसू के मूल में
भले अपना दुःख रहा हो 


पर यह दुःख
विस्मृत हो
कब समष्टिगत करुणा में
परिवर्तित हो जाता है
ये साश्चर्य देखते हुए हम अभिभूत हुए बिना रह नहीं पाते हैं
दर्द में ही फिर हम मोद मनाते हैं!


दुःख हमें ज़मीन से जोड़ जाता है
हमें थोड़ा और इंसान बनाता है 


पीड़ा का अपना अर्थशास्त्र है
वह हमें अपने तरीक़े से समृद्ध करती है 


हाँ, ज़िन्दगी!
तू दुखती हुई
जीवन के सबसे ज़्यादा क़रीब रही


ये दर्ज़ करते हुए
समय के मुख पर स्मित मुस्कान थी!
 


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