प्रार्थना में बहते आँसू के मूल में भले अपना दुःख रहा हो
पर यह दुःख विस्मृत हो कब समष्टिगत करुणा में परिवर्तित हो जाता है ये साश्चर्य देखते हुए हम अभिभूत हुए बिना रह नहीं पाते हैं दर्द में ही फिर हम मोद मनाते हैं!
दुःख हमें ज़मीन से जोड़ जाता है हमें थोड़ा और इंसान बनाता है
पीड़ा का अपना अर्थशास्त्र है वह हमें अपने तरीक़े से समृद्ध करती है
हाँ, ज़िन्दगी! तू दुखती हुई जीवन के सबसे ज़्यादा क़रीब रही