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दुःख का अंधकार ठहरा ही रहेगा!

टिमटिमाती रौशनी
गुजरता हुआ सुख है


फैला अंधकार
ठहरा हुआ दुःख है


इस अंधकार में
दीप जलाने को
माचिस की तीली टटोलता मन
आस-विश्वास की ओर उन्मुख है


ठहरे हुए पानी में
कंकड़ फेंक
जैसे हलचल कर जाते हैं अनजाने ही 

अबोध बच्चे 


वैसे ही ठहरे हुए दुःख में
खलल-सा पैदा करने को मचल जाता है 

दीप जलाने को उद्धत 

अबोध मन 


नहीं जानता मन  


कि
हर हलचल
हर खलल के बाद 


फिर वही ठहराव होगा पानी की सतह पर
वैसे ही जैसे दुःख ठहर जाएगा फिर फिर 


बातियाँ जलेंगी
होते-होते मलीन होगी रोशनी
दीप बुझ बुझ जाएँगे 


दुःख का अंधकार ठहरा ही रहेगा!





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