नीले आकाश के
अंतिम छोर की ओर ताकती
हरी टहनी की मुस्कुराहट को तस्वीर में उतारते हुए
सूरज की किरणों ने
हमें देख लिया
किरणें भी मुस्कुरा दीं
उनकी मुस्कुराहटें भी तस्वीर का हिस्सा हो गयीं
अब
जब उस तस्वीर को
देखते हैं
तो एक सुकूँ मुस्कुरा उठता है-
कि
देखो तो
गहन उदासी में भी
तुम्हारे पास कितनी मुस्कुराहटें हैं
सुख न सही, सुख की कितनी तो स्पष्ट आहटें हैं
...
प्रकृति की ओर निर्निमेष तकते नयनों को
यूँ अनगिन चमत्कारों का उपहार स्वतः मिल जाता है !