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Channel: अनुशील
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मुड़ कर देखने का उसे अवकाश नहीं

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रो लें जी-भर कर
सर दे मारें दीवारों पर


पर
ज़िन्दगी मजबूर है क्या ?!
जो आँसू पोंछगी
गले लगाएगी ?!


अरे!
वह तो
अपनी धुन में चलती है
अपनी ही धुन में
चलती चली जाएगी!

मुड़ कर देखने का 

उसे अवकाश नहीं 

हमारा मन पढ़ ले 

ये उसका अन्दाज़ नहीं 


ख़ुद हमें ही घुटनों की धूल झाड़
आगे बढ़ना होता है
उसका साथ बना रहे इसके लिए
परिस्थितियों की दुर्गम पहाड़ियों को चढ़ना होता है 


इतना सब करते हुए
अपने आप पर किया विश्वास फलित होता है
ज़िंदगी अपना लेती है
कि कभी-कभी उसका मन भी द्रवित होता है ! 


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