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Channel: अनुशील
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पूजा के फूल!

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मेहँदी से जुड़े कितने ही रंग हैं यादों के.…., सभी रंगों को खूब याद करते हैं यहाँ. 
पंजाबी लाईन, मानगो में गुजरा बचपन जमशेदपुर की यादों में सबसे ज्यादा जगमगाता है. ये वो समय था जब स्वर्णरेखा नदीपर केवल एक ही पुल था. ट्रैफिक जाम की सम्भावना हमेशा होती थी, इम्तहान के समय अगर स्कूल जाते वक़्त हमारा रिक्शा जाम में फंस जाता था तो पैदल पुल पार कर फिर किसी न किसी उपाय से स्कूलपहुँचते थे. फिर नए पुल का निर्माण कुछ राहत ले कर आया. अब दो पुलथे और राह कुछ आसान. पुराने छोटे पुल पर पैदल चलना अब आसान हो गया, पुल जितनी बार पार किया मन पुल के प्रति और कृतज्ञ होता गया. यही पुल हमें हमारे स्कूल राजेन्द्र विद्यालयतक ले जाता था!
पुल के एकदम पास ही थी गली जिसमें १९८८ से २००२ तक रहे हम लोग. एक बड़े परिवार जैसा ही था पूरा मोहल्ला. आज दूसरे जगह शिफ्ट हो गए हमलोग जमशेदपुर में पर पंजाबी लाईन के लोगों से जो आत्मीयता थी वह अब तक है. हमारे ऊपर वाले मकान में रहने वाला छोटे भाई सा Souvik अभी पेरिस में है. हम आज भी पड़ोसी ही तो हैं! एक फ्लोर की दूरी हुआ करती थी हमारे घरों में, आज दो देश की दूरियां हैं पर पेरिस से स्टॉकहोम आना दुरूह तो है नहीं, हम कई बार आने जाने की प्लानिंग कर चुके हैं. देखें कब सफल होते हैं! सुन रहे हो न Souvik?
बात शुरू हुई थी मेहंदी से, तो चलते हैं माड़वाड़ी आंटी के घर. तीज का समय होता था तब मम्मी के दोनों हाथ और पैरों में भी कितनी सुन्दर मेहंदी लगा देती थी वे, हमारी छोटी छोटी हथेलियों में भी अंत में कुछ फूल खिल उठते थे उनके प्रताप से.
इस बार मम्मी ने कोई मेहंदी नहीं लगायी, हम लोग हैं नहीं वहाँ जो कुछ आड़ी तिरछी लकीरें खींच दें उनके हाथों में और न ही अब वह समय है जब कोई पड़ोस वाली आंटी साधिकार मेहंदी लगा दें अपनी किसी परेशानी की परवाह किये बगैर. खैर, ये अच्छी बात है कि हमारे मोहल्ले के लोग, जो अब भी वहीं पंजाबी लाईन में रहते हैं और जो इधर उधर शिफ्ट भी हो गए, वे सभी अब तक जुड़े हुए हैं. सामने वाले घर में जो पंजाबी आंटी थीं, उन्हें हम बचपन से ही सामने वाली आंटी कहते थे. आज दूरी तो बहुत है, पर अब भी वो हमारे लिए सामने वाली आंटी ही हैं! अपनी शादी की विडियो देखते हैं तो पूरे पंजाबी लाईन से मिलना हो जाता है!
हमें याद है तीज पूजा के बाद अगले दिन प्रसाद बांटना, घर घर जा कर हम प्रसाद बाँट आते थे, २००२ में जब पंजाबी लाईन छूटा तब भी तीज के बाद पंजाबी लाईन प्रसाद पहुँचाने जाना याद आता है. पता नहीं इस बार मम्मी से संभव हो पायेगा या नहीं, हममें से कोई न हो तो मम्मी अकेली क्या क्या करें; भले ही जा नहीं पाएंगी पर मम्मी सबको याद ज़रूर कर रही होंगी और सबलोग भी ज़रूर मम्मी को और प्रसाद को याद कर रहे होंगे!
ये तीज की कुछ पुरानी यादें हैं, मेहंदी, पेड़किया, मम्मी का निर्जला उपवास और सुबह उठकर उनके लिए जल्दी जल्दी पारण बनाना!
तीज करने का अवसर जब मेरे जीवन में आया तो हम यहाँ थे स्वीडन में, आये ही थे २००९ में यहाँ कि पहली तीज पड़ी थी. न मेहंदी लग पायी न प्रसाद ही बना पाए थे, चार दिन ही तो हुए थे भारत से आये. बिलकुल अनजान था यह शहर. बस निर्जला उपवास और पूजा हो पायी उस वर्ष, २०१० में मेहंदी भी लगाई, इन फैक्ट, लगवाई… ये रही सुशील जी की कलाकारी ::

रंग कितना चढ़ा था यह तो याद नहीं, पर गाढ़ा नहीं ही रहा होगा क्यूंकि मेहंदी स्टॉकहोम में ली गयी थी तभी तो कभी बहुत बाद जब हमने स्टॉकहोम से बतियाते हुए यह कवितालिखी तो कहना नहीं भूले ::


तुम्हारे यहाँ
कांच की चूड़ियाँ नहीं मिलतीं
मेहँदी तो मिली, पर उदासीन सी है वह...
जाने क्यूँ हथेलियों पर नहीं खिलती?
शिकायत न समझना...
बस बता रही हूँ...
मैं जहां से आई हूँ
वहाँ की खुशबू बस जता रही हूँ...

पिछले वर्ष दिसंबर में घर गए थे हमलोग तीन वर्ष बाद. आज जो मेहंदी का रंग है मेरी हथेलियों पर वह हम 
घर से लाये हैं. इस बार खुद ही लगाया, उनसे जिद नहीं की लगा देने की. खुद ही जो हुआ खिंच लिया हथेलियों पर दो एक दिन पहले ही.
इस बार हम दोनों ने मेहंदी से ज्यादा मेहनत प्रसाद बनाने पर किया. घर में ही, जाने कौन विधि से, हमारे स्वामी ने खोवा तैयार किया, मैदा साना और हम दोनों ने मिल कर गढ़े पेड़किये (गुझिया को हमारे यहाँ पेड़किया ही कहते हैं). हमको भी मम्मी को देखते हुए जो याद था वो तरीका अप्लाई किया, उन्होंने भी बचपन में अपनी मम्मी की मदद की है प्रसाद बनाने में तो वो क्यूँ पीछे रहते, उन्होंने भी अपना हुनर आजमाया और हमारा प्रसाद तैयार हो गया! जितनी जैसी व्यवस्था हो सकती थी यहाँ वो की हमने और पूजा पाठ भी बढ़िया से संपन्न हो गया. ये एक तस्वीर पूजा के बाद की::

याद आता है, जमशेदपुर से पापा बनारस हॉस्टल तक पार्सल कर देते थे प्रसाद, उस पार्सल की बात ही निराली हो जाती थी. पहुँच जाए ये बहुत बड़ी बात होती थी, किस हाल में पहुंचा प्रसाद ये गौण हो जाता था! 
सांसु माँ और मम्मी से बात हो गयी फ़ोन पर, दोनों का व्रत ठीक से संपन्न हो गया, उन्हें प्रणाम निवेदित कर हमने भी सुबह की पूजा के बाद अब प्रसाद खा लिया है. 
सोमवार है, स्टॉकहोम यूनिवर्सिटी भागने की तैयारी शुरू की जाए अब.… 
***
हम समस्त  जीवनाधारसमेट लाये हैं यहाँ, अपनी जगह से दूर अकेला जीवन आसान नहीं है पर उसे आसान बनाने की जिम्मेदारी निश्चित हमारी है.…  
और यह कहते हुए संतुष्ट होता है मन -


हमारी किस्मत की तरह...
ऐ! माटी...
तू भी हर पल
साथ है...
तीज की पूजा हेतु
गौरी-गणेश बनाने को
हम कुछ रजकणों से संस्कार
समेट लाये हैं!


सभी को गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं!
पूजा के कुछ पावन फूल अर्पित हैं प्रभु के श्रीचरणों में, भक्ति भाव ही तो होते हैं पूजा के फूल और इन्हीं से प्रसन्न होते हैं भगवान!
वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।


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