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Channel: अनुशील
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पतझड़ में अनावृत हुए दुखों पर मरहम-से उजले फ़ाहे

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जो चिट्ठियाँ
लिखीं जानी चाहिए थीं
पर लिखी न गयीं 


जो शब्द
कागज़ पर उतरने के बाद भी
कभी अपने अभीष्ट तक न पहुँचे 


जिनकी यात्रा
शुरू होने से पहले ही
रद्द हुई 


वो
अधूरे वाक्यों के बीच पसरे
रिक्त स्थानों का व्याकरण
बन कर रह गए 


रुई के फ़ाहों-से बर्फ़ीले आसमानी संदेशों को
तकते हुए
कितने जमे हुए बर्फ़-से शब्द पिघले
पानी हो कर बह गए 


ज़मीं पर बिछी उजली रेत में
फिर हमने
कुछ अक्षर लिखे मिटाए
कुछ वैसे ही
जैसे हमारे हिस्से मुस्कान लिख
फिर नियति उसे मिटा देती है


ये बस इतना ही है-- 


बिछी हुई बर्फ़ पर
उँगलियों से कुछ लिख जाना
फिर गिरती हुई बर्फ़ की बारिश में
उसका ढक जाना
मिट जाना 


चिट्ठियों का न लिखा जाना
और जो लिख भी गयीं तो
उनका अपने पते पर न पहुँच पाना  


ये सारे लुके-छिपे दुःख
बर्फ़ के फ़ाहों संग बरसते हैं
और ढक लेते हैं
पतझड़ में अनावृत हुए दुःख को 


न पहुँचने वाली चिट्ठियाँ भी फिर
जाने कैसे तो
गंतव्य तक की राह पर
निकल पड़ती हैं

रिक्त स्थानों का
उलझा सा व्याकरण
फिर संभावनाओं का आयाम हो जाता है 


सुख-दुःख
आपस में अनौपचारिक सी कोई संधि कर लेते हैं 


बर्फ़ की बारिश थम जाती है.


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