$ 0 0 मौन की भाषा दर्द का भाष्य हैजीवन का संत्रासगीत में बसने वाले सुर हैंशब्द, शब्द हैंजीवन, जीवन हैऔर किसी एक क्षणये सब चूक जाते हैंशब्दों की अपनी सीमा हैभाव-भंगिमाओं कोहू-बहू अभिव्यक्त कर पाना हर बार शब्दों की परिधि में नहीं होता जीवन तो स्वयं निश्चित वय लिखवा कर आता हैसमाप्त हो जाने का प्रारब्ध साथ लिए दर्द भी डूब जाता हैअसीम हुआ तो क्या हुआएक सीमा के बाद उसका होनाउसके न होने की ही पुष्टि है कि अंधेरों की अभ्यस्त आँखेंस्याह अंधेरों में भीउजाले तराश लेती हैंवहीं खिलते हैं सबसे उजले पुष्पमिट्टी उनका रंग, गंध और श्वास होती है दर्द का भाष्यबाँचे जाने की धीरता पाता हैसंत्रास गीतों में गूंथ जाता है टीसउभरती है उसे अपनाते जाते हैंहम धीरे-धीरे खुद को पाते जाते हैं.