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Channel: अनुशील
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दर्द का भाष्य

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मौन की भाषा दर्द का भाष्य है
जीवन का संत्रास
गीत में बसने वाले सुर हैं


शब्द, शब्द हैं
जीवन, जीवन है


और किसी एक क्षण

ये सब चूक जाते हैं



शब्दों की अपनी सीमा है

भाव-भंगिमाओं को

हू-बहू अभिव्यक्त कर पाना 

हर बार शब्दों की परिधि में नहीं होता 


जीवन तो स्वयं निश्चित वय लिखवा कर आता है
समाप्त हो जाने का प्रारब्ध साथ लिए 


दर्द भी डूब जाता है
असीम हुआ तो क्या हुआ
एक सीमा के बाद उसका होना
उसके न होने की ही पुष्टि है 


कि 


अंधेरों की अभ्यस्त आँखें
स्याह अंधेरों में भी
उजाले तराश लेती हैं
वहीं खिलते हैं सबसे उजले पुष्प
मिट्टी उनका रंग, गंध और श्वास होती है 


दर्द का भाष्य
बाँचे जाने की धीरता पाता है
संत्रास गीतों में गूंथ जाता है 


टीस
उभरती है 


उसे अपनाते जाते हैं
हम धीरे-धीरे खुद को पाते जाते हैं.


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