एकटक
तकते हुए
उस छोर का आसमान
स्वप्न सी कोई आकृति
आँखों से आ टकराती है
आसमानी रंग
समंदर के नीलेपन में घुलता हुआ
तट को खारा कर जाता है
ऐसे धुंधलके में
किनारों का उदास कोई संगीत
उभर आता है
तट से टकराती लहरों के उस शोर में
हम मौन की सीपियाँ चुनते हैं
उस नीले एकांत में
लहरों पर टिकी आँखों में जैसे
स्मृति और विस्मृति की पूरी दुनिया आ बसती है
उस छोर पर
आसमान झुक जाता है
अकस्मात ही जीवन रुक जाता है.