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Channel: अनुशील
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कागज़ का मन भींग रहा है

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लिखते रहने की
सम्भावना का
बचे रहना
साँसों के बचे रहने की गवाही है


दुःख का
अनुभूति में
बने रहना
जीवित होने की पुष्टि है


दर्द की
सम्यक उपस्थिति
गति का ही स्पष्ट मानक है


पत्थर हो चुके आँसू
आँखों का खारापन जीते हैं 


शब्द
खो से गए हैं 


टो-टो कर
उन्हें समेट रहे हैं 


और कागज़ का मन भींग रहा है


शायद
दर्द को मिटने की मनाही है

ये गतियाँ ही वस्तुतः
जीवन के होने की गवाही है 


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