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Channel: अनुशील
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मुट्ठी में सागर भर लहरें थीं

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दिवार पर टिकी नज़र
कुछ तो 

तलाश रही थी 


उस तलाश में
दिशाहीन इंतज़ार था 


इंतज़ार के हिस्से
सीमातीत अनिश्चितताएं थीं 


देवता तटस्थ थे

लौ का काँपना ज़ारी था  


मुट्ठी में
सागर भर लहरें थीं 


लहरों के संवेग में
जीवन का ही
आंशिक तत्व था 


फिर यूँ हुआ
भींची मुट्ठी से 

सब रीत गया 


प्रस्थान जीत गया.


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