होने
और न होने के बीच
एक क्षण का
सूक्ष्म अंतर होता है
उस एक क्षण के
इस पार
और उस पार
बहुत बड़ी दुनिया होती है
दरअसल वह क्षण
अपने आप में ही पूरी दुनिया है
आशाओं, सपनों, और
अनिश्चितताओं वाली हमारी दुनिया को
क्षण भर का दुर्भाग्य
बदल देता है चिर विराम में
और हमारी अनिश्चितताएं
परिवर्तित हो
हो जाती हैं शाश्वत अंत
जहाँ से वापसी नहीं होती.
होने और न होने के बीच
अवस्थित वह क्षण
मौन है
उस पार
जाने हम क्या थे
क्या जाने अब कौन हैं ?!