$ 0 0 कोरा ही था सबकोरा ही रहा अपने कोरेपन कोक्या ही भरते उस शून्यता कोभर ही नहीं सकते थे!हताश कागज़ो के कोरेपन मेंअर्थ तलाशते रहे बिखरते शब्दों मेंहम अपने होने कोतराशते रहे अक्षरों नेकागज़ के इस छोर सेउस छोर तक कीनिरर्थक यात्रा की उत्तर गुम रहेविषम रहे प्रश्नों की ऊहा-पोह से जूझते मन-प्राणनम रहे.