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Channel: अनुशील
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बिखरा मन, बिखरे शब्द

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कोरा ही था सब
कोरा ही रहा 


अपने कोरेपन को
क्या ही भरते 


उस शून्यता को
भर ही नहीं सकते थे!


हताश 


कागज़ो के कोरेपन में
अर्थ तलाशते रहे 


बिखरते शब्दों में
हम अपने होने को
तराशते रहे 


अक्षरों ने
कागज़ के इस छोर से
उस छोर तक की
निरर्थक यात्रा की 


उत्तर गुम रहे
विषम रहे 


प्रश्नों की ऊहा-पोह से जूझते मन-प्राण
नम रहे.


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