$ 0 0 बहुत बुरा होता हैस्वयं से संवाद की गुंजाईश का मर जाना जबदुःख हमसे हमारे सारे शब्द छीन लेता हैभाषा मूक हो जाती हैकुछ कहते नहीं बनताशून्य में तिरते आँसू ठहरे होते हैंआत्मा पर लगे घाव गहरे होते है अपने भीतर तिल-तिल कर कुछ मरने लगता हैमर रहा होता है जबएक पल की मृत्युविस्तार भरा जीवन स्थगित कर देती हैसमय की विकटता जब बढ़ती ही सी जाती हैत्रास के बादल नहीं छँटतेबादल नहीं बस आँखें बरसती हैं तब कहीं सेहिम्मत बटोर करबहुत-बहुत सारी तकलीफ़ों के बावज़ूद भाषाअपना उजास खुद रचती हैस्थिर हो चुके स्पंदन मेंसाँस बन जा बसती है सीमित संसाधनों सेपुल बनाती हैउससे हो कर वह मेरे अंधेरों तक आती है बेमानी ही सहीउसके पाससच्ची एक सांत्वना है-कह लेनाकहते-कहते रो लेनाकई बार ज़रूरी होता हैकि तमाम अनिश्चितताओं की धुँध में ही तो आख़िरहमें बचा-खुचा जीवन थामना है जो ये न हुआ तोसहज गतिथम जाएगी आँख बहती हैबहती रहेनहीं तोनमी ठोस होकरजम जाएगी