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Channel: अनुशील
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तमाम अनिश्चितताओं की धुँध में

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बहुत बुरा होता है
स्वयं से संवाद की गुंजाईश का 

मर जाना 


जब
दुःख हमसे हमारे सारे शब्द छीन लेता है


भाषा मूक हो जाती है

कुछ कहते नहीं बनता


शून्य में तिरते आँसू ठहरे होते हैं
आत्मा पर लगे घाव गहरे होते है 

 

अपने भीतर तिल-तिल कर 

कुछ मरने लगता है
मर रहा होता है 



जब

एक पल की मृत्यु


विस्तार भरा जीवन 

स्थगित कर देती है


समय की विकटता जब 

बढ़ती ही सी जाती है


त्रास के बादल नहीं छँटते
बादल नहीं 

बस आँखें बरसती हैं 



तब 

कहीं से
हिम्मत बटोर कर
बहुत-बहुत सारी तकलीफ़ों के बावज़ूद 


भाषा
अपना उजास खुद रचती है
स्थिर हो चुके स्पंदन में
साँस बन 

जा बसती है 


सीमित संसाधनों से
पुल बनाती है
उससे हो कर 

वह 

मेरे अंधेरों तक आती है 


बेमानी ही सही
उसके पास
सच्ची एक सांत्वना है-


कह लेना
कहते-कहते रो लेना
कई बार ज़रूरी होता है


कि 

तमाम अनिश्चितताओं की धुँध में ही तो आख़िर
हमें बचा-खुचा जीवन थामना है 



जो ये न हुआ तो
सहज गति
थम जाएगी 


आँख बहती है
बहती रहे
नहीं तो
नमी ठोस होकर
जम जाएगी


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