कुछ दुःख
ऐसे होते हैं
जिन्हें चाह कर भी
शब्द नहीं दिया जा सकता
शब्दों में
न व्यक्त हो सकने वाला दुःख
हृदय की नम मिट्टी में
मिल जाता है
वहीं रहता है
हम उससे
कभी नहीं छूटते
चाहे समय की
कितनी ही परतें क्यूँ न चढ़ जाएँ
नम मिट्टी नम ही रहती है
न दुःख
मिट्टी में मिल
मिट्टी हो पाता है
न हम
मिट्टी में मिल, मिट्टी होने तक
उस दुःख से छूट पाते हैं
दुःख
सूर्य हो जाता है
उगता रहता है, डूबता रहता है
मन के अनदेखे अनजान क्षितिज पर
उगते-डूबते हुए
वह निरंतर बना रहता है.