पतझड़ है झरे हुए पत्तों पर सहर्ष सज गयी कविता उर्वर
वो हरा हो तो भरा है झर गया तो भी खरा है
पत्तों की नियति का मर्म पहचानना हो जो जीवन को ज़रा करीब से जानना हो
तो
पत्तों का सौन्दर्य निहारें
उनकी धमनियों में बहती जिजीविषा पर
मन प्राण वारें !!
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स्वप्न से स्मृति तक से एक कविता सूखे पत्तों पर उकेरी हुई !! यही शुभकामना है कि हर कोई अपने अपनों के साथ दीप पर्व ख़ुशी ख़ुशी मनाये ! सौहार्द का दीप रोशन हो !!