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Channel: अनुशील
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जली हुई माचिस की तिल्लियों ने मुझसे कहा--

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जली हुई माचिस की तिल्लियों ने
मुझसे कहा--


सहेजो न मुझे भी
जैसे तुम शब्दों को सहेजती हो
कविताओं को पूजती हो


गौर से देखो--


संध्या दीप जला कर
लौ को मुझसे ही प्रज्वलित कर
त्याग देती हो मुझे


मैं त्याज्य नहीं!!


कविताएं सहेजती हो न
मुझे भी सहेजो


मैं भी कविता ही हूं 


कई बार
उन कई कविताओं से श्रेष्ठ
जिन्हें तुमने सर आंखों पर बिठाया.

***
तो इन तिल्लियों की बात मान कर
मैंने उन्हें
हटाया नहीं इधर कुछ समय से


रहें ये भी


कि सच कहती हैं ये
ये भी कविता ही हैं


प्रज्वलित कर लौ को खुद त्यक्त !!


ज़िन्दगी !! तू भी कैसी है?!!


पास पास
फिर भी हर क्षण जीवन और मृत्यु में विभक्त


कब किसका पलड़ा भारी हो जाए
कौन जानता है !



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