यूँ ही तो अपना सफ़र तय कर नदियाँ भी समंदर से मिल जाती होंगी !
जहाँ से समंदर शुरू होता है ठीक उसकी दहलीज़ तक पहुँच कर रास्ता रुक जाता है
मगर नदी के सन्दर्भ में कुछ और ही बात है
वह जहां समाप्त होती है वहीं से उसका वास्तविक जीवन शुरू होता है
सागर से एकाकार हो वह सागर सी हो जाती है फिर उसकी यात्रा कभी नहीं थमती
वह कई नदियों को फिर थामती है लहरों की हो जाती है
नदी खोती नहीं न ही मिटता है उसका वज़ूद
बस इतना ही यात्रा है--
नदी, नदी नहीं रहती सागर हो जाती है !!
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[[ एक रास्ता पकड़ कर चलते रहे, रास्ता समंदर तक पहुंचा कर, रुक गया. वहां से पीछे लौटना था, वही रास्ता पकड़ कर हम वापस लौटने लगे और चेतना के धरातल पर एक नदी करवट लेती रही. उसी नदी ने लिखवाया यह कविता-सा-कुछ ]]