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Channel: अनुशील
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ऐसा भी होता है

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रिश्तों की जितनी परिभाषाएं थीं
सबकी अपनी सीमा थी

जो नाम दिए जा सकते थे
वो सब कहीं न कहीं बौने थे

जुड़ाव अनजान था
अनाम था

हमने उसे
वैसा ही रहने दिया

जब ख़ामोशी थी तो खामोशियाँ सुनी,
ख़ामोशियों को कहने दिया

यूँ चलते-चलते सफ़र में
रिश्तों के गगन पर
अपनेपन के कई सितारे टांके

जीवन के सुनसान में
कितने ही
मर्मान्तक अनुभूतियों के दंश आंके

इस तरह
कविता का आँगन हमें मिला

प्रेरणा के प्रताप से
सुमन खिला.

हमने जाना-


बियाबान 

ख़ाली पांवों के दर्द से 

रो पड़े-
ऐसा होता भी है

बहुत दुःख दंश है यहाँ
पर यही वो संसार है
जहाँ एक दूजे के दुःख को
अपना मान-
मन रोता भी है.


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