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Channel: अनुशील
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मन में भी छाले हो गए

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कुछ असम्बद्ध टुकड़े. खो न जायें कहीं, सो सहेज लिया जाए टुकड़ा-टुकड़ा मन. टुकड़ा-टुकड़ा लेखन.


*** *** ***


सुनसान डगर पर
गूंजता हुआ शोर


ज़िन्दगी
बढ़ती हुई हर क्षण
मौत की ओर

***

ऐसे कैसे
सीधी सरल रहती
वक्र हो गयी 


ये खुद से ही है हारी दुनिया

गलती हमारी ही होगी
जाने क्या हुआ ?
रहने लायक रही नहीं हमारी दुनिया


***

जिसकी
खो गयी हो चाभी
वो ताले रो गए


रिश्तों के बियाबान जंगल में चलते-चलते
पाँव में ही नहीं
मन में भी छाले हो गए

***

तुम्हारी महिमा अपूर्व
'तुम'स्वयं माधुर्य

***

ये अप्रतिम दृश्य
कई बार
नज़रों से गुज़र चुका है

विस्तृत गगन
स्नेहिल धरा की ओर
युगों-युगों से झुका है


***

एक गुज़रता है तूफ़ान
तो कई और
आ जाते हैं

उनका सामना करते
छलनी-छलनी, हम सीने हैं फ़क़त
***

अभी जो बैठ गयी है
थक कर,
तो क्या हुआ ?


ये आस की नैया
अहर्निश
चली बहुत है.


समय
एक सा
कहाँ रहा है कभी


बीतते हुए
जता जाती हैं खुशियाँ
कि वे छली बहुत हैं.

***

आद्यान्त
आंसू ही हैं बहते

इसे दुनिया
यूँ ही नहीं कहते !!




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